पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१३५

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सग्राम हम वीर कह सराहते हैं और उनकी बड़ी प्रशंसा करते हैं; सकार से उन्हे बड़े बड़े तग्रमे और खिताब दिये जाते हैं। किसी मनुष्य को जो बात उसके चित में है और जो वह कहता है उसके अतिरिक्त कुछ कहे तो हम उसे झूठा और मिथ्यावादी कहते हैं पर वही बात यदि कोई राज मत्री कहे और उसके द्वारा स्वार्थ साधन कर दूसरों को हानि पहुंचावे तो उसे हम राजनीतिज्ञ कहते हैं । जो काम खान्द जाति के लोग या फीज़ी टापू के रहने वाले करके दुष्ट और पापिष्ट कहे जाते हैं वही यदि जापान या जर्मनी के रहने वाले करे तो वीर हैं। जो झूठ और बनावट अदालत के कसूरवार को ७ वर्ष का कैदी कर देता है वही आक्रमणकारी देशो के सेनापतियों अथवा और और कर्मचारियों के लिये राजनीतिज्ञता है। मनुष्य मे जहाँ बहुत सी तामसी या शैतानी प्रकृति है उनमे लड़ना भी एक है किन्तु उसी के साथ कितने उत्तम गुण भी उसमे हैं । एक समय मनुष्य क्रोध-बश या लालच मे पड़ कोई बुरा काम करता है तो पीछे अवश्य पछताता है और मान लेता है कि हम से बुरा बन पड़ा और उस बात का प्रण करता है कि अब हम से ऐसा काम न बन पड़े। अवश्य यह बात मनुष्य में अच्छी है; यदि उसमे दोष हों और वह जान जाय कि यह हमारे में दोष है तो आगे के लिये यह एक भलाई का चिन्ह है; और यदि उस दोप को वह दोष मानता ही नहीं तो लाचारी है। हमें बड़ा खेद है कि आज कल हमारी सभ्यता मे सग्राम के लिये उत्साह का होना जो बड़ा दोष लग रहा है हम उसे दोष मानते ही नहीं वरन् उस दोष के और अधिक फैलाने के लिये लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। यह बात सत्य है कि किसी किसी समय हमें लड़ाई करने के लिये लाचार हो जाना पड़ता है और उस समय न लड़नाही अधम और बुरा काम है परन्तु दो एक उदाहरण से हम उस तरह की और और वातों को जो अच्छा सिद्ध करें तो ऐसा मान लेना भी हमारी भूल