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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१३७

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संग्राम.. जहाँ लाखों मनुष्यों के शव को कुत्ते कोवे सियार गिद्ध अपने अपने ओर नोच खसोट कलोले करते हुये पाये जाते हैं चित्त पर कैसा असर होता होगा! धन्य हैं वे साहसी वीर पुरुष जो प्राण को पत्ते पर रख ऐसे स्थान में भी निर्भय रह वीरता के जोश में भरे हुये पीछे कदम न धर शत्रु के सन्मुख आगे बढते ही जाते हैं । जो कुछ आदर, गौरव और मान इन वीर पुरुषो का किया जाय वह सब कम है; इनके बरावर दरजा न तो बड़े से बड़े विद्वान् का है; न बड़े प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ का है; न किसी नामी विज्ञानविद कला कोविद् (साय- न्टिस्ट या आर्टिस्ट ) का है। संसार भर में वधवन्धन आदि अपमृत्यु से मरे हुओं की संख्या अवश्य उससे कितनी कम होगी जितनी अभी हाल मे ट्रान्सवाल युद्ध में मारे गये की है । किन्तु ऐसी लड़ाई देवासुर संग्राम, राम रावण युद्ध या प्युनिकवार से शुरू कर अब तक मे न जानिये कितनी हो चुकी होंगी जिनमे कितने लोगों की जान गई होगी और कितने धन का अपव्यय हुआ होगा। इन्हीं सब बातों को देख भाल विद्वान् ज्ञानी जन के चित्त में तर्क-वितर्क उठता है कि संग्राम क्या होता है और इसका क्या परिणाम है ? यदि किसी कुशल राज नीतिश राज मंत्री से यह प्रश्न पूछा जाय तो वह बहुधा यही उत्तर देगा कि अमुक जाति या देश के लोग हम से डरते नहीं। सरकश हो गये, हमारी इतात नहीं कुबूल करते; वरन् औरों पर अत्याचार करते हैं उन्हें अपना वशंवद बनाये रखने को इस युद्ध का ग्रारभ किया गया है। ऐसे ऐसे कोई बहाने अपनी सफाई रखने का ढूंढ लेते हैं। किन्तु वास्तव में जब उनका वैभवोन्माद सीमा को अतिक्रमण कर लेता है धन, प्रभुता और वीरता का अभिमान बढ़ जाता है तभी लड़ना सूझता है ऐसोही के पक्ष में सग्राम सर्वथा बुरा और अनुचित है। नहीं तो ठीक किसी ने कहा है-शस्त्र की विद्या सब विद्याओं से श्रेष्ठ है, शस्त्र के द्वारा जब राज्य की रक्षा हो सब भाँति स्वस्थ रहता है तब पढ़ना लिखना धर्म-कर्म भोग-विलास सत्र सूझता है। भ०नि०-१