पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१४३

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सोना Wealth heaped on wealth nor truta por safety buys, The dangers gather as the treasure rise. यद्यपि कलह के तीन कारण कहे गये हैं ज़र, जमीन, जन; पर सच पूछो तो सब बिगाड़ का असिल सबब सिर्फ जर है। हमारा हिन्दुस्तान इस सोनेही के कारण छार में मिल गया । हमारे बेफिकर हाकर सोने से हमारे अपरिमित सोने पर इतर देशीय म्लेच्छ गण बाज और चील की तरह आ टूटे, लाखों मनुष्य की जान गई; अन्त को आखीरी बाज़ अगरेज़ अपने मजबूत पंजे से उस पर जमी तो गये अब रूस इसके लिए मतवाला हो रहा है और ताक लगाये हुए है पर उसका ताक लगाना व्यर्थ है अब तो यहां प्राय सोने की जगह धूर फाकना है। ___सिद्धि रही सो गोरख ले गये, खाक उड़ावें चेले" अस्तु, इन सब बातो से हमे क्या ? सोना निस्सन्देह ससार मे सार पदार्थ है यदि सोने वाला स्वयम् सारग्राही हो और उसे नेकी में लगावे। इसमे एक यह अद्भुत बात देखने मे आई कि पर्वत के सैकड़ों स्रोत से नदी के झरने की भाँत जब यह आने लगता है तो सैकड़ों द्वार से आता है और जितने काम सब एक साथ प्रारभ हो जाते हैं। इधर जेवर पर जेवर पिटने लगे, उधर पक्का सगीन मकान छिड़ गया, सवारीशिकारी अमीरी ठाठ सब ठठने लगे। - "अर्थेभ्यो हि विवृधेभ्यः संमृतेभ्यस्ततस्ततः। . क्रिया सर्वाः प्रवर्तन्ते पर्वतेभ्य इवापगा"। जब यह जाने को होता है तो सब चीज़ ऊपर से देखने को यथास्थित बनी रहती है पर गजभुक्त कपित्थ सदृश भीतरही भीतर पोले पड़ टाट उलट मुह बाय रह जाते हैं। "समायाति यदा लक्ष्मीनारिकेबफलाम्वत् । ' विनिर्याति यदा लचमोर्गनमुक्तकपित्थवत्" । सितम्बर, १६११