पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१४५

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नई बात की चाह लोगों मे क्यो होती है १४५ और शक्ति घटी । फारस, मिश्रकेलड़िया आदि पुराने देश किसी गिन्ती मे न रहे । यूरोप-का-प्रादुर्भाव हुआ, ग्रीस और रोम ने पुराने इतिहासों में स्थान पाया । बाविलन, नैनवे आदि पुराने नगर द्वै गये, एथेन्स स्पार्टा और रूम रौनक-मे बढ़े। कालक्रम अनुसार, फ्रांस, जर्मनी और वृटेन इस समय अपने पूर्ण अभ्युदय-को पहुँचे हुए हैं। हौले-हौले कुछ दिनों मे इनको - भी काल अपना कलेवा बनाय निगल बैठेगा। यूरोप नेस्तनाबूद होगा; अमेरिका उठेगी। समस्त ब्रह्माण्ड का यही नियम है। एक ओर सूर्यदेव का उदय होता है दूसरे ओर अस्त होते हैं एक ग्रह डूबता है दूसरे का-उदय होता है। भारतवर्ष मे भी ठीक इसी तरह काल बीत रहा । वैदिक युग आया, पौराणिक युग गया, तंत्रों का प्रचार हुा । तन्त्रो को भी मिटाय बौद्ध और जैनियों ने ज़ोर पकड़ा। यहाँ के पुराने रहनेवालो को निकाल पार्यों ने अपना राज्य स्थापन किया, आर्यों का पराजय कर मुग़ल और पठानों ने अपना प्रभुत्व स्थापन किया । फिरगियों ने मुगल और पठानों को भी उन्ही आर्यों के समकक्ष कर दिया, जिन्हे जीत मुसल्मान मुसल्लमईमान बने थे और आर्यों को गुलाम और काफिर कहा । वेद की भाषा को हटाय संस्कृत प्रचलित हुई, लोक और वेद के नाम से जिसके दो भेद हुये जिसकी निर्ख पाणिनि को अपने सूत्रों मे "लोके- वेदेच" कह कर अलग-अलग करना पड़ा। सस्कृत मुर्दा भाषा मान ली गई प्राकृत चली जिसके मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री आदि के नाम से १८ भेद हुये वह भी अठारहों (प्रकार की प्राकृति किताबी भाषामात्र रही उसके स्थान मे उर्दू, हिन्दी, बगला, गुजराती, पजाबी श्रादि के अनेक भेद अब बोले और लिखे जाते हैं और अब तो इन सबों को हटाय अँग्रेज़ी क्रम-क्रम सभ्यता की नाक हो रही है। न सिर्फ हिन्तुस्तान ही में इस तरह का अदल बदल हुश्रा वरन् समस्त सृष्टि की यही दशा है। एक प्रकार की शिल्पविद्या अनाहत होती है दूसरी उसकी जगह आदर पाती है। हमारे यहाँ की पुरानी ,