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भट्ट निबन्धावली
यहाँ के लोग ऐसे बोध-शून्य हैं कि किसी निरपराधी दुखी वेचारे पर
अत्याचार होते देख मुँँह फेर लेते हैं। हम नहीं जानते ऐसो के जीवन का क्या फल जिनसे कुछ उपकार साधन न हुआ। वर्तमान् महा- दुर्भिक्ष मे कितनो की बन पड़ी है जो कभी अन्न का रोजगार नही किये थे वे भी इस समय रोज़गारी वन बैठे हैं। सरकार की ओर से बड़ी-बड़ी कोशिश पर भी कि अन्न सस्ता बिकै उनके कारण नही बिकने पाता इत्यादि बोध-शून्यता के अनेक उदाहरण पाये जाते हैं जिसे विशेष पल्लवित करना केवल पिष्टपेषण-मात्र है।
अगस्त; १८९६
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