पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/३२

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७. संभाषण ईश्वर की विचित्र सृष्टि में संभाषण शक्ति केवल मनुष्यो ही को दी गई है । यदि यह शक्ति मनुष्य मे न होती तो भेड़ बकरी अादि चौपायो जानवर और प्रादमी मे फिर क्या अन्तर रहता क्योंकि मनुष्य और पशुयो की जान शक्ति और क्रया शक्ति में बडा अन्तर न होने पर भी मनुष्य जो पशुओं की सृष्टि से इतना विशिष्ट है कि यह उन पर अपना अधिकार और स्वामित्व जमाये हुये है सो इसी कारण कि जानवर वेचारों को यह शक्ति प्राप्त नहीं है कि मनुष्य की सी सुव्यक्त और सुस्पष्ट बोल चाल के द्वारा अपनी मनोगत बाते दूसरे समीपस्थ जीव से प्रगट कर सके। दो प्रेमियों में परस्पर प्रेम का अकुर जमाने की पूर्व पीठिका या उपोद्घात पहले सभापण ही होता है। जिन्होंने कादंबरी कभी पड़ा हे वे जान सकते हैं कि पुण्डरीक और महाश्वेता की कहानी इमका कहाँ तक उपयुक्त उदाहरण है जहाँ उन दो प्रेमियों मे प्रथम प्रथम अवएड और सच्चे प्रेम की प्रस्तावना केवल दो चार वात के सलापही से प्रारंभ हुई समार के ऐसे कोई भी विषय नही जिनके अविम उपभंग से अन्न को वन पैदा हो किन्तु एक प्रेमियों के प्रेमालाप ही में यह शक्ति है कि परस्पर प्रेमामत लयर्स ने प्रेम प्रकाशक मंलाप में उय या उचाट 'मोनोटोनी अपना दखल नही कर सकती २४ घटे का दिन और रात जिनती मेम कहानी को काना फम्बी के लिये बहुत कम है। भवभूति महावि ने उनर चरित्र में दो प्रेमारत के प्रेम गकार मावान ही मनोरमार प्रालि चिः उतारा. "fri-पिन नमारनिगागा मिनपा मंग घनिधि परिभानकोटगोनविन्तिमायामानानिमीत ॥"