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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/५८

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भट्ट निवन्धावली निकाल दे जैसा ब्राह्मण-मात्र का सह-भोजन होने लगे ऐसा ही क्षत्री और वैश्यो का भी। कच्ची तथा पक्की चाहे किसी जाति का ब्राह्मण हो भोजन कर लेने में कभी पागा पीछा न करै। दक्षिणी ब्राह्मणो मे जैसा प्रचलित है कि महाराष्ट्र तैलग, द्राविड़ सब एक साथ भोजन करते हैं। हमारे यहाँ पाठ कनौजिये नौ चूल्हे प्रसिद्ध हैं जो केवल दभ और ईर्षा की बुनियाद पर है, धर्म का कही लेश इसमे नही है । धर्म-शास्त्र के अनेक ग्रन्थ ढूंढ़ डारे कच्ची पक्की तथा सखरी निखरी के भेद मे क्या मूल है कोई एक बचन भी इस तरह का न मिला । सखरी निखरी की प्रथा निरी आधुनिक और निर्मल है समाज को नित्य नित्य नीचे गिराने को महा दाम्भिक अदूरदशी ईर्ष्यालु स्वार्थी लोगों की चलाई हुई है, जिससे लाभ कोई नहीं है आपस की ईर्ष्या द्रोह अलबत्ता बढ़ जाती है और एक एक समाज के इतने टुकड़े हो गये हैं कि हिन्दुओ म जातीयता "नेशनालिटी कभी आवेहीगी नहीं। यह तो हम जानते हैं कि आपके चित्त में हमारे इस लेख का कुछ असर न होगा क्योंकि जो जागता है उसको जगाने से क्या ? आप स्वय सब जाने बैठे हैं तब हम आपको क्या चितावै किन्तु हाँ ससार को आप दुःख रूप मान बैठे हैं तो अब अपने सिद्धान्त को नहीं बदला चाहते। खान-पान के व्यर्थ के तितिम्बे को कम करने में कितना आराम और सुख है सब लोग इसे स्वीकार करेंगे किन्तु इतना साहस और इतनी हिम्मत किसी में नहीं है कि अग्रसर हो इसे करके दिखावे और दूसरों के लिए उदाहरण हो । अँगरेज़ी तालीम के जमाने में आपकी ऐसी ऐसी वेबुनियादी वेहृदा बातें अब देर तक चलने वाली नहीं हैं जिसे आप आचार विचार के नाम से पुकार बहा घमण्ड कर रहे हैं कि हम मनुष्य मात्र में परम पुनीत और सर्वश्रेष्ठ हैं वही एक ऐसा कोढ़ है कि हिन्दू जाति और हिन्दू समाज को नित्य नीचे को गिराता गया और गिराता जायगा। मसल है "ऊचे दाना कुनद कुनद नादान वले खराबिय बिसियार