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पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/६०

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१४-चढ़ती जवानी की उमंग समय राज का यह दोष कि 'कभी एक सा न रहा लक्ष्य करने लायक है । बाल पोगण्ड तव कैशोर फिर युवा, युवा से अधेड़ उपरान्त बुढापा जीव मात्र के साथ लगा रहता है। सर्जित पदार्थ मात्र के साथ यह अदल बदल चला ही जाता है। नामी से नामी वैज्ञानिक, दार्शनिक, डाक्टर, वैद्य या हकीम तथा और और श्रामिल काविल जो अपने अपने फन या हुनर का दावा रखते हैं उनकी भी इस अदल बदल के दूर करने में एक नहीं चलती। एक वह समय था जब हम भी नव प्रसूत सद्यः प्रस्फुटित कुसुम सदृश तारुण्य संपन्न जवानी के जोश में भरे मदमाते हो रुश्तम को भी कुछ माल नही समझते थे; संसार सब मुनगा समझ पड़ता था साहस और उद्योग मे एकता थे। अपनी रूप- माधुरी और सौन्दर्य में रूप-राशि अश्विनी कुमार तथा कामदेव मे अपनी तुलना करते थे। उत्साह और हौसिला तथा नई नई उमगों के आगे बड़े से बड़े काम तुच्छ और हलके जॅचते थे। मन होता था कि कोई ऐसी मेगनाटिक पावर हासिल करे या कोई ऐसा वाष्पीय यंत्र या विद्युत् शक्ति ईजाद करे कि आसमान के सातवें नवक में तैरते फिरें। अथवा वेगगामी विष्णु भगवान् के वाहन गरुड़ का पर नोच खसोट अपने में लगा ले कि ऊँचे से ऊँचा सत्य लोक पर्यन्त जा धूम श्रावे अथवा कोई ऐसा वर्मा निकाले कि अतल, वितल, सुतल, तलातल, पाताल पर्यन्त उसले देद डाले । अर्जुन ने भीष्म को वाण-गंगा का जल पिलाया था सो तो सब कथानक और पोथी का भाटा मात्र रहा हम कर के दिखा है। एक लात मार तो समस्त भूमण्डल काँप उठे, जलजला छा जाय, दिशात्रों के अन्त मे दिमान चिल्ला उटे जर्रारी तसरी में चाराग्रगण्य जापानी जो इन दिनों वीरता का नमुना दिसलान