पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/७६

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१८-सुनीतितत्वशिक्षा जैसे प्रकृति के नियमो के विरुद्ध चलने से विरुद्ध खान-पान आदि से जल वायु कृत अनेक शारीरिक रोग पैदा होते हैं जो देर तक शरीर को क्लश पहुंचाते हैं। वैसे ही सुनीति तत्वशिक्षा "मॉरल ला" सम्बन्धी नियमों के तोड़ने से भी रोग होते हैं पर येह रोग उस तरह के नहीं हैं जो शरीर को क्लश दे या बाहरी निदानों से उनकी पहचान की जा सके। देर तक शबनम में बैठे रहिये प्रकृति के नियम आप को न छोड़ेगे ज़रूर सरदी हो जायगी कई दिनों तक नाक बहा करेगी और विरुद्ध आचरण करते रहो ज्वर आ जायगा सरदर्द पैदा हो जायगा अठवारों पड़े पड़े खटिया सेवते रहांगे। वैसे ही सुनीति विरुद्ध चलने से "मारल ला" आपको न छोड़ेंगे । कितनों को हौसिला रहता है बुढापे तक जवानी की ताकत न घटै इस लिये तरह तरह के कुश्ते भाँत-भांत के रस, पौष्टिक औषधियाँ सेवन करते हैं। खूबसूरती बढाने को खिजाव लगाते हैं, पियर्स सोप, गोलडेन श्राईल काम में लाते हैं । सेरों लवेडर तरह तरह के इत्र मला करते है जिसमे सौन्दयं और फैशन में कही ने किसी तरह की त्रुटि न होने पावे। किन्तु इसका कहीं जिकिर भी न सुना कि सुनीतितत्व सम्बन्धी सौन्दर्य (मॉरल ब्यूटी) सुनीति के नियमों पर चलने का बल मारल स्ट्रेंग्थ क्या है उसको कैसे अपने में ला या उसे कैसे बढ़ा? जैसा सौन्दर्य और शारीरिक बल बढाने की चिन्ता में लोग व्यग्र रहते हैं वैसा यह कहीं सुनने में पाया कि हम में डाह मात्सर्य, पैशन्य, जाल, फरेब, वेईमानी, लालच, द्रौद-बुद्धि किस अन्दाज़ ने है उसमे से कुछ कम हो सकता है और कितने दिनों की मेहनत में किस सगेसोm masaram ammam