पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(७)
भूमिका।

का और काव्यरचनारूपसे, स्पष्ट विदित होताहै। 'लवंगी' मक बादशाहकन्यासम्बन्धीय कहानी दक्षिण भारतवर्षके सर्व साधारण पंडित जानते हैं। परंतु इस ओर जगन्नाथरायके ग्रंथों का विशेष प्रचार न होने से कदाचित् कोई वाचक उस आख्यायिकासे परिचित न होंगे, इस हेतु, उनके मनोरंजनार्थ उसका क्षिप वर्णन मैं योग्य समझता हूं। वह इस प्रकार है:-बादशाह के लवंगी नामक एक कन्या किसी राजपूत रानी से थी। वह सहजही अत्यंत सुंदर थी परंतु युवावस्थाके आगमनसे मन्मथाधिदेव ने, उसे अपनी समस्त चातुरीका व्यय करके इतना रमणीय किया कि मानों स्वपत्नी रतिरानीको वृद्धापकाल आने से गतयौवना जान, लवंगीहो को अपनी सहबारिणी करना इष्ट समुझा। इस कन्या ने पंडितराजकी पांडित्य, तारूण्य, रम्यरूपछटा को सखियों से सुन परम विरहाकुल होत्साती, अपने नयन रूपी चकोरद्वयको पंडितेन्द्ररूपी कलाधरके दर्शनार्थ नितांत चंचल किया। अनुकूल समय आया परंतु प्रेक्षणने उसकी व्यथा को द्विगुणित करके यह प्रतिज्ञा करवाई की मुझ लावण्यलताका अवलंबन इस पंडितकदंबके अतिरिक्त अन्य शाखी होना महान् धर्मसीमाका उल्लंघन करना होगा क्योंकि मैं इसे स्वामीभाव से ग्रहण कर चुकी। किसी समय जगन्नाथराय और बादशाह विलास मंदिर में 'बुद्धिबल'। (शतरंज *[१]) खेल रहे थे कि द्विती-


  1. * यह शब्द 'शत्रुजय' का अपभ्रंश जान पड़ता है।
    १ वाचक विस्मित होंगीके विलासमंदिर, जहां बादशाहको मंत्रिवर्ग अथवा स्ववंशके माननीय पुरुषोंके साथ खेलमें निमग्न होनाथा वहां यः कश्चित् एक पंडितका प्रवेश! परंतु विचार करनेसे भ्रमका शीघ्रही निराकरण हो जायगा। विद्याविलासी जनौंको पंडितों तथा कवियोंसे अधिक, अन्यजन कदापि सुखप्रद नहीं हो सकते। जहां विद्या है वहां वय, जाति, धर्म, धन इत्यादिकका विवेचन नहीं किया जाता। विक्रम तथा भोजराजकी सभामें पंडित दक्षिण ओर मंत्री वाम और स्थान दिये जातेथे।