इदं लताभिः स्तवकानताभिर्मनोहरं हंत वनांतरालम्।
सदैव सेव्यं स्तनभारवत्यो न चेद्युवत्यो हृदयं हरेयुः॥१०८॥
स्तनभारवती युवती यदि चित्तको न हरण करै तो पुष्पगुछ से नम्रहुई लताओंसे सौन्दर्यमान काननका मध्यभाग सदैव सेवने योग्य है (नम्रलताओंको अवलोकन कर कामिनीका स्मरण होगा यह भाव)
सा मदागमनबृंहिततोषा जागरेण गमिता खिलदोषा।
बोधिताऽपि वुबुधे मधुपैर्ने प्रातराननजसौरभलुब्धैः[१]॥१०९॥
मेरे आगमनसे अधिक हुआ है संतोष जिसको (और) जागरण से व्यतीत की है सारी रात्रि जिसने ऐसी वह (नायिका) प्रातःकाल मुखोत्पन्न सुंगध के लोभी मधुपों के जगाने से भी न जगी।
अविचिंत्यशक्तिविभवेन सुंदरि प्रथितस्य शंबररिपोः प्रभावतः।
विधुभावमंचिततमांतवा ननं नयने सरोजदलनिर्विशेषताम्[२]॥११०॥
हे सुंदरि! अपूर्व शक्तिवैभव से प्रसिद्ध मन्मथ के प्रभाव से तेरा मुख चंद्रभाव को और नयनद्वय कमलदल की समता को प्राप्त हुए हैं (मदन संचार होने से मुख चंद्र समान और नयन कमल समान हुए यह भाव)