यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
विलासः४]
(१६९)
भाषाटीकासहितः।
भी वंदन किये जानेके योग्य है (इन पदार्थोंसे भी विशेष मधुर है यह भाव)
शास्त्राण्याकलितानि नित्यविधयः सर्वेपि सं-
भाविता दिल्लीवल्लभपाणिपल्लवतले नीतंनवीनं
वयः। संप्रत्युज्झितवासनं मधुपुरीमध्ये हरिः
सेव्यते सर्वं पंडितराजराजितिलकेनाकार लो-
काधिकम् ॥४५॥
पंडितराजश्रेणी के तिलकभूत (जगन्नाथराय) ने सर्व लोकाधिक कृत्य किये-शास्त्रों का अध्ययन किया, (सन्ध्या वंदनादिक) सकल नित्यविधि भी साधे, युवावस्था दिल्लीनरेश के हस्तपल्लव तले[१] बिताई, (और) अब इस समय विषय वासनाओंको त्याग मथुराक्षेत्र में भगवान नारायण का सेवन करते हैं।
दुर्वृत्ता जारजन्मानो हरिष्यतीति शंकया।
मदीय पद्यरत्नानां मंजूषैषां मया कृता॥४६॥
इति श्रीमत्पंडितराजजगन्नाथविरचिते भामिनी
विलासे शांतो नाम चतुर्थो विलासः॥४॥
समाप्तोऽयं ग्रंथः।
- ↑ यौवनकाल में मैने अनेक भोग भी भोगे यह सूचित किया।