पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/२२

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(२)
[प्रास्ताविक-
भामिनीविलासः।


से) सुनाई पड़ते हैं; (और आसमंताद्भाग में केवल) करुणा पात्र हस्तिनी तथा क्षुद्र पशु मात्र (दृष्टिगोचर होते) हैं, तो ऐसे समय में मृगराज जो सिंह वह अपने अत्यंत तीव्र नखों की पांडित्य कहां प्रकट करै? (किसी राजाको बहुत काल तक युद्ध अथवा किसी पंडित को शास्त्रार्थ न करते देख यदि कोई शंका करे तो उसका निवारण इस अन्योक्ति से करना चाहिए कि शत्रु अथवा वादानुवाद करनेवाला तो कोई रहाही नहीं पराक्रम अथवा पांडित्य कहां प्रकट की जाय? हस्तियोंका दिगंतर में वास वर्णन करके कालिदासादि कविप्रशृति तथा विक्रमादित्यादि राज प्रभृति के यशमात्र का स्थिर रह जाना सूचित किया)॥

पुरा[१] सरसि मानसे विकचसारसालिस्खल-
त्परागसुरभीकृते पयसि यस्य यातं वयः॥
स पल्लजलेऽधुना मिलदनेकभेकाकुले।
मरालकुलनायकः कथय रे कथं वर्तताम्॥३॥

प्रफुल्लित कमल पंक्तियों के गिरेहुए परागसे सुगंधित मानसरोवर के जल में जिसकी तरुण अवस्था गई अर्थात् व्यतीत हुई ऐसा वही हंस श्रेष्ठ वृद्धावस्था में अनेक मंडूक परिपूर्ण एक तुच्छ जलाशय में किस कारण आया? (एक उ-


  1. पृथ्वी छंद है।