पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
विलासः१]
(३१)
भाषाटीकासहितः।

हे सिंह किशोर! तुम दुग्ध पान करो, मत्तगजेन्द्र की भांति करके दिशाओंकी ओर कठोर दृष्टि से न देखो (क्योंकि जिसे तुम उन्मत्त हस्ती समझते हो वह) यह त्रैलोक्यकी नाप को हरनेवाला और गंभीर ध्वनि करने वाला नीलवर्ण नवीन जलधर है (किसी सत्पुरुष को अपना शत्रु जान उसके उपर क्रोध करनेवाले राजकुमार का वृत्तांत प्रतीत होता है)

धीरध्वनिभिरलं ते नीरद मे मासिको गर्भः।
उन्मदवारणबुद्ध्या मध्येजठरं समुच्छलति॥६१॥

(सिंहनी कहती है कि) कि हे मेघ! तू अपनी गंभीर ध्वनि को बस कर क्योंकि तेरे शब्दको मत्तगजेंद्र की गर्जना समझ एक महिने का ममगर्भस्थ बालक उदर में उछलने लगता है (प्रतापि पुरुषों को गर्भ में भी वैरी का नाद सहन नहीं होता) इस आर्या में 'संबंधातिशयोक्ति' अलंकार है।

वेतंडगंडकंडूतिपांडित्यपरिपंथिना॥
हरिणा हरिणालीषु कथ्यतां कः पराक्रमः॥६२॥

गजगंडस्थल[१] की कंडू [खुजली] को नाश करनेवाला सिंह हरिणो मे अपने किस पराक्रम को वर्णन करै? (वीर मनुष्य स्व समान पुरुषो ही मे अपना पराक्रम प्रकट करते हैं नीचौं मे नहीं)


  1. हस्ती का मस्तक॥