पृष्ठ:भामिनी विलास.djvu/५९

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विलासः१]
(३९)
भाषाटीकासहितः।


र्णोपमा' अलंकार है-उपमान, उपमेय, वाचक और धर्म सब मिलते हैं)

खलः कापट्यदोषेण दूरेणैव विसृज्यते।
अपायशंकिभिर्लोकैर्विषेणाशीविषो यथा॥७७॥

आपत्नि की शंका से, विष होने के कारण सर्प के समान कपटदोषयुक्त खल, दूरही से त्याग किया जाता है।

पाण्डित्यं परित्दृत्य यस्य हि कृते बन्दित्वमालम्बितं
दुष्प्राप्यं मनसापि यो गुरुतरैः केशैः पदं प्रापितः॥
रूढस्तत्र स चेन्निगीर्य्य सकलां
पूर्वोपकारावलीं दुष्टः प्रत्यवतिष्ठते तदधुना
कस्मै किमाचक्ष्महे॥७८॥

पांडित्य को त्याग (राजा के सन्मुख) बंदित्व [बंदीजनौं अर्थात् प्रशंसा करनेवालों के धर्मका] अवलंबन करके वह पदवी जो चित्त से भी मिलने को महा कठिन थी, मैंने जिस दुष्ट को महत क्लेश से प्राप्त कराया वह पद पै आरूढ हो मेरे पूर्वकत सर्वोपकारों का कौर [विस्मरण] करके उलटा शत्रु भाव प्रकट करता है इससे अब इस समय में मैं किसके पास जाऊं और क्या कहूं! अर्थात् अब कुछ भाषण करने का अवसरही नहीं।

परार्थव्यासंगादुपजहदपि स्वार्थपरतामभेदैक-
त्वं यो वहति गुण भूतेषु सततम्। स्वभावाद्य