पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१०८

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बने रहेंगे। इस प्रतिज्ञा पर वह लोग ऐसे स्थिर रहे कि चालीस के चालीसों बड़े बड़े ओहदों पर पहुंच गये।

ग़यासुद्दीन।

पर जब बलबन राज्याधिकारी हुआ तो उसे डर लगा कि ऐसा न हो कि कहीं मेरे मरने पर इन लोगों में से कोई राज का दावा करे और मेरे बेटों को राज न करने दे। इस डर से उसने सब को मरवा डाला।

१३—बलबन के राज में एशिया के कई प्रान्तों के रईस और सर्दारों ने मुग़लों के अत्याचार से व्याकुल होकर अपने अपने देश छोड़ दिये और भारत में शरण ली और यहीं रहने सहने लगे। एक बार ऐसा हुआ कि बलबन की सभा में इस प्रकार के पन्द्रह रईस इकट्ठा हो गये। बलबन ने दिल्ली के बाज़ारों और गलियों के नाम बदल दिये। किसी का नाम ग़ोर की गली, किसी का नाम बग़दाद का कूचा, और किसी का खेवा का कूचा आदि नाम रख दिया। मुग़लों के दल के दल पंजाब पर चढ़ आये पर बलबन और उसके बेटों ने सब को मार पीट कर भगा दिया। अन्त में मुग़लों और बलबन के बेटे महम्मद में घोर संग्राम हुआ और महम्मद मारा गया। बलबन की आयु इस समय अस्सी बरस की थी; सिंहासन पर बैठे हुए भी उसे बाईस बरस हो चुके थे। बेटे के मरने का समाचार सुनकर उसे इतना दुःख हुआ कि वह मरही गया।

१४—बङ्गाले का हाकिम तोग़रल खां बाग़ी हो गया था।