बलबन ने उसे पराजित करके मार डाला और अपने बेटे बुग़रा खां को उसकी जगह बङ्गाले का हाकिम बनाया। बुग़रा खां सुख से बङ्गाले में राज करता था और इसी पर सन्तुष्ट था। मरने के पीछे भी कभी उसने ऐसा बिचार न किया कि मैं बलबन के सिंहासन का अधिकारी बनूं। फल यह हुआ कि उसका बेटा कैक़बाद दिल्ली का बादशाह हुआ। कैक़बाद के समय में बड़ी अनीति रही। बुग़रा खां भी एक बार आया और बेटे को समझाया पर कैक़बाद ने एक न सुनी। बुग़रा खां की पीठ फिरते ही पहिले से भी अधिक उत्पात होने लगा। कैक़बाद को राज मिले अभी तीन बरस भी न हुए थे कि उसके वज़ीर ने जो ख़िलजी जाति का था उसे मार डाला और आप बादशाह बन बैठा। बुगरा खां बङ्गाले ही में पड़ा रहा और ४४ बरस उस देश में राज करके इस संसार से सिधार गया। कैक़बाद के पीछे बुग़रा खां की मृत्यु तक दिल्ली के तख्त़ पर छ: बादशाह बैठे।
(१२९० ई॰ से १३२० ई॰ तक)
१—तीस बरस में ख़िलजीवंश के चार बादशाह हुए। यह वास्तव में अफ़ग़ानी थे पर तुर्किस्तान से आये थे और भाषा भी तुर्की ही बोलते थे। इनके समय में मुसलमान दखिन में भी पहुंच गये।
२—इस वंश का पहिला बादशाह जलालुद्दीन खिलजी था। सिंहासन पर बठने के समय इसकी आयु अस्सी बरस की थी। यह मित्र और शत्रु सब से सरल सुभाव से मिलता था। जलालुद्दीन अपने भतीजे अलाउद्दीन पर बड़ा भरोसा रखता था और उसे अपने