पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/११०

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बेटों की भांति मानता था। अलाउद्दीन सेना लेकर दखिन पहुंचा जहां अभी तक कोई अफ़ग़ान नहीं गया था। यह विन्ध्याचल पर्वत में आठ सौ मील चल कर आठ हज़ार सेना के साथ देवगिरि में पहुंचा जिसे अब दौलताबाद कहते हैं और जो मरहठा देश के राजा रामदेव की राजधानी थी। अलाउद्दीन सब से कहता था कि मेरा चचा मुझे मारनेवाला है; मैं उससे भाग कर आया हूं। इस कारण किसी राजपूत राजा ने उससे छेड़ छाड़ न की और अचानक उसने देवगिरि को आ दबाया। राजा ने उसको बहुतसा धन दिया और कुछ भाग अपने देश का भी उसको भेंट किया। अलाउद्दीन दिल्ली लौट गया। बूढ़े चचा ने जब यह सुना तो बहुत प्रसन्न हुआ और अकेला आप ही उसकी अगवानी को आया। चचा अलाउद्दीन को छाती से लगाता था कि भतीजे ने उसकी छाती में तलवार भोंक दी फिर उसका सिर काट डाला और भाले में लगाकर सारी सेना में फिराया, जिसमें सब जान जायं कि जलालुद्दीन मर गया। इस करतूत के पीछे अलाउद्दीन दिल्ली आया; यहां जलालुद्दीन के दो बेटों को मारा और आप राज का अधिकारी बना। जिस समय जलालुद्दीन अलाउद्दीन के हाथ से मारा गया, उस समय उसे राज करते हुए, सात बरस हुए थे।

३—अलाउद्दीन ने १२९५ ई॰ से १३१५ ई॰ तक राज किया। यह बड़ा निर्दयी और कठोर था और जो मन में ठान लेता था उसपर दृढ़ रहता था। ख़िलजी बादशाहों में सब से शक्तिमान यही था। इसने बीस बरस राज किया; जितना धन दखिन से लाया था वह सब औरों को बांट दिया जिसमें वह लोग जलालुद्दीन के मरने की बात भूल जायं और यह अपना राज दृढ़ करे। गुजरात के लोगों ने जिनको कि ग़ोरी बादशाहों ने आधीन कर लिया था अलाउद्दीन के समय से बहुत पहिले पठान हाकिमों को निकाल