१५—इस बीच में शेरखां सेना सहित आ पहुंचा और एक और लड़ाई हुई पर पहिले ही धावे में हुमायूं की सेना तितर बितर हो गई। दस ही बरस राज करने पर हुमायूं लाहौर की ओर भागा। यह आशा करता था कि कामरां कुछ मेरी सहायता करेगा पर वह आप इतना बोदा निकला कि पञ्जाब को शेरखां के हवाले करके आप काबुल जा बैठा और वहां की बादशाहत पर सन्तुष्ट हो के बैठ रहा।
हन्दाल भी हुमायूं को छोड़ कर चलता बना। यह बेचारा बड़ी बड़ी कठिनाइयां झेलता सिन्ध के रेतीले मैदानों में मारा मारा फिरा किया और अन्त में फारस पहुंचा।
१६—हुमायूं जब सिन्ध मे भटकता फिरता था तो उसने एक ईरानी महिला हमीदा बेगम से निकाह किया। अमर कोट के उजाड़ किले में १५४२ ई॰ में इसके बेटे अकबर का जन्म हुआ तुर्कों का दस्तूर था कि जब किसी राजकुमार का जन्म होता था तो बादशाह इसकी खुशी में अपने अमीरों और सर्दारों को बहुत कुछ धन दौलत देता था। ग़रीब हुमायूं के पास अमरकोट में धन दौलत कहां थी, खाने तक को भी भली भांति न मिलता था। उसकी जेब में एक कस्तूरी का नाफ़ा पड़ा था। उसको निकालकर चीरा और थोड़ी थोड़ी सी कस्तुरी अपने साथियों को दी। मुशक की गंध से हवा महक उठी। हुमायूं ने सगुन अच्छा समझा और कहा कि जैसे यह कस्तूरी हवा को सुगन्धित कर रही है उसी तरह मेरा बेटा बादशाह