मालवा, गुजरात, ख़ानदेश, काबुल और कंदहार सब जीत लिये। अपने राज के अंत में अकबर विन्ध्याचल के उत्तर में सारे भारत का, और दखिन में ख़ानदेश, अहमदनगर और बरार का सम्राट था। एक समय उसने दखिन जीतने का विचार किया। अहमदनगर के निज़ामशाही बादशाहों में से एक की मृत्यु पर चार मनुष्य राज के दावादार खड़े हुए। उनमें से एक ने अकबर से सहायता मांगी। अकबर ने अपने बेटे मुराद को उसकी सहायता के लिये भेजा। अहमदनगर के हाल में पहिले कहा जा चुका है कि चांद बीबी ने कैसी बीरता के साथ उसका सामना किया था। अंत को बरार का राज अकबर को मिल गया। सन् १५९९ ई॰ में अकबर आप दखिन गया और ख़ानदेश को अपने राज में मिला लिया। अहमदनगर और असीरगढ़ के गढ़ों को जीतने से उसको ख़ानदेश मिला। बीजापुर और गोलकुंडे के बादशाहों ने भेटें दे कर दूत भेजे और अकबर के चौथे पुत्र दानियाल का बिवाह बीजापुर के सुलतान की कन्या से हुआ।
१३—सन् १६०० ई॰ के लगभग बाप के ४५ बरस के लम्बे राज से घबड़ा कर सलीम ने राज सिंहासन पर अधिकार जमाने का बिचार किया। उसकी आयु तीस बरस की थी। यह अजमेर का हाकिम था; बंगाले का सूबेदार मानसिंह उसका सहायक था। मानसिंह को बंगाले के एक अफ़ग़ान उमराव के बिद्रोही हो जाने के कारण वहां जाना पड़ा था। राजा मानसिंह के जाते ही सलीम के सिरपर भूत चढ़ा। उसने सोचा कि पिता दक्षिण में हैं। उसके सेनापति दूर दूर प्रान्तों में अलग अलग पड़े हैं। इस बिचार से इलाहाबाद पहुंचा, अवध और बिहार पर अधिकार जमा लिया, जो कुछ धन सम्पत्ति वहां मिली सब ले लिया और अपने सम्राट होने का ढंढोरा पिटा दिया। यह कहता