पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/१६८

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फिरता था कि अकबर मुसलमानों के पैग़म्बर का बैरी है वह अबुलफज़ल से मिल कर मुसलमानों से कुरान की शिक्षा छुड़ाना चाहता है। अब उसको सम्राट होने का कोई अधिकार नहीं है। धार्मिक मुसलमानों को चाहिये कि मेरा साथ दें। अकबर ने जब पुत्र के विद्रोह का हाल सुना तो स्नेह और करुणा से भरा हुआ एक पत्र लिखा और समझाया कि पुत्र, तुम अनजान हो और जो ठीक रास्ते पर आ जाओ तो मैं तुम्हारे अपराध क्षमा करूंगा। पत्र लिखने के पीछे ही वह कूच करता हुआ दिल्ली में आ उपस्थित हुआ। सलीम का कोई सहायक न हुआ और उसने जान लिया कि अभी उसके राज का समय नहीं आया है। सलीम ने अपना अपराध स्वीकार किया, अभय मांगी, और बंगाले और उड़ीसे का हाकिम नियत किया गया।

१४—सलीम ने देखाने को अभय प्रार्थना करली परन्तु जी में लज्जित न हुआ था। अब उसने ऐसा काम किया जिसके करने से वह जानता था कि पिता को अत्यंत शोक होगा। अबुलफ़जल कुछ थोड़ से सैनिकों के साथ किसी सरकारी काम पर गवालियर की ओर जा रहा था। सलीम ने बीरसिंह देव को जो बुन्देलखण्ड के एक छोटे से राज का अधिकारी था बहकाया कि अबुलफज़ल को रास्ते में मार डालो। अबुलफज़ल अच्छे स्वभाव का मनुष्य, विद्वान और राजभक्त था; अकबर अपने सब नौकरों से अधिक उसपर भरोसा करता था; और भाइयों की भांति उससे स्नेह करता था। अकबर ने जब उसके मरने का समाचार सुना तो बड़ा सोच किया और दो दिन तक न खाया न सोया। अभी तक वह यह न जानता था कि अबुलफज़ल को किसने मारा। सलीम ने जो अपना जीवनचरित्र लिखा है उसमें आपही कहता है कि मैंने अबुलफज़ल को मरवाया। केवल