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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/३६

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था इस के सिवाय नये आर्यों के झुंड के झुंड अफगानिस्तान और कशमीर से चले आते थे जो पहिले आये हुए आर्यों को आगे ठेलते जाते थे। आर्य लोग पंजाब के दक्षिण तो जा नहीं सकते थे क्योंकि उस दिशा में चार सौ मील तक रेत ही रेत था जो आंधियों में एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड़ता फिरता था। इस लिये उनमें से बहुत से यमुना नदी पार करके गंगा की ओर चल पड़े।

२—परन्तु यह देश भी बस्तियों से भरा था। यहां भी द्रविड़ कोल जाति के लोग रहते थे और कुछ मिली जुली जातियां भी थीं जो द्रविड़ और कोल के मिलने से उत्पन्न हुई थीं। यह लोग गिनती में आर्यों से कम से कम बीस गुने अधिक रहे होंगे परन्तु बहुत दिन तक भारतवर्ष के गरम मैदानों में रहते रहते न तो आर्य जाति के मनुष्यों की भांति लम्बे चौड़े ही थे, न वैसे बलवान ही थे और न उन के समान बुद्धिमान और चतुर थे। बहुत दिनों तक आर्य इन को नीच समझते रहे और इन का निरादर करते थे। इसलिये उनको दास कहा गया है। दूसरे पुराने निवासियों को आर्य अपने ग्रन्थों में असुर दानव और दैत्य कहकर सम्बोधन करते हैं। इनके विषय में कहा गया है कि इनका रंग काला और इनका रूप भोंड़ा था। यह कच्चा मांस खाते थे। इनकी नाक चिपटी थी और इनका कोई धर्म्म न था। इस बात का ध्यान रहै कि यह उनका खान उनके बैरियों का किया हुआ है। इतना निश्चय होचुका है कि इनमें से बहुतेरे सभ्य थे और उनके बड़े बड़े नगर बसे थे; और और देशों से वणिजव्यापार करते थे। उस समय के लिखे द्रविड़ ग्रन्थों का यदि पता लगता तो अवश्य उनमें आर्यों के विषय में भी वही बातें होती जो आर्यों ने अपने शत्रुओं के विषय में अपने ग्रन्थों में लिखी हैं। पहिले तो आर्य इनसे लड़ते रहे; अन्तको उनसे मित्रता करली और उन्हीं में मिल गये। इस