पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास.djvu/९०

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लोग सब जंगली थे। एक दूसरे से लड़ा करते थे। इनके आचार व्यवहार भी बुरे और पशुओं के से थे।

२—ईसा से अनुमान ६०० बरस पीछे अरब में एक नबी (ईश्वर के दूत) प्रगट हुए। इनका नाम महम्मद था। अरब देशवालों के बुरे आचार देख कर इनका जी बहुत कुढ़ा और उनके सुधारने के लिये उनसे जो कुछ हो सका इन्होंने किया। इनका उपदेश यह था कि ईश्वर एक है, मूर्तिपूजा पाप है, आपस में लड़ना बुरा है। पहिले तो अरबवालों ने इनकी बात ध्यान से न सुनी और उनको मारने के बिचार में रहे पर कुछ दिन बीतने पर उनका द्वेष कम हो गया। बहुतेरों ने अपनी मूर्तियां तोड़ डाली और पैग़म्बर साहब के साथ हो गये।

३—अरब के जो कुल अपने पुराने आचार छोड़ना न चाहते थे उन्हों ने महम्मद साहब और उनके अनुगामियों को बहुत सताया पर अन्त को वह भी परास्त हो गये और ६३२ ई॰ तक जिस साल महम्मद साहब का अन्तकाल हुआ सारा देश उनके बस में हो गया। जिस धर्म का प्रचार महम्मद साहब ने किया उसको इसलाम कहते हैं और इस धर्म पर चलनेवाले मुसलमान या मुसलिम कहलाते हैं। मुसलमान अपने कुरान को परम पवित्र आकाश से उतरी किताब मानते हैं और कहते हैं कि इसलाम धर्म का प्रचार ६२२ ई॰ से हुआ जब महम्मद साहब मक्के से मदीने चले गये थे। इस प्रवास को हिजरा या हिजरत कहते हैं और हिजरी सन तभी से शुरू होता है। मुसलमानों का बिश्वास है कि ईश्वर एक है महम्मद साहब उसके दूत हैं। ईश्वर के सामने सब मुसलमान बराबर हैं और भाई भाई हैं। इसलाम में हिन्दुओं की सी जातिपांत नहीं है।

४—जब अरब के सब रहनेवाले मुसलमान हो गये और एक