पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१००

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1 दिक कालको सभ्यता बर लिये माया है उससे स्पट प्रकट होता है कि चैदिक आर्योंके हृदयमें गऊके प्रति बड़ा सम्मान था। यद्यपि यह कहना अस- म्भव है कि वे लोग मांस बिलकुल न खातेधे, पर शायद यह । कहना ठोक होगा कि मांस उनका साधारण भोजन न था । दूध, अन्न, तरकारी और फल यही उनका साधारण भोजन था। रुईकी खेती और इस यातका भी पर्याप्त प्रमाण मौजूद है कपड़ा बुनना । कि प्राचीन मार्य कपड़ा बुनना, चमड़ा रंगना । और धातुकी नाना घस्तुयें बनाना भली भांति जानते थे। रूई- की खेती सबसे पहले भारतमें हुई और रूईका घन सबसे पहले इसी देशमें बनाया गया। भारतसे रुईकी खेती और मईसे कपड़ा बनानेको विद्या पूर्वमें चीन और जापानतफ और पश्चिममें पहले मरवमें, और फिर अरबते यूरोपमें प्रचलित हुई। यहां तक कि लईके लिये अंग्रेजीमें जो शब्द “काटन" प्रयुक्त होता है वह भरवी शब्द 'कुतन' का अपन्नश है। वास्तुविद्या । प्राचीन आर्य घर बनाकर रहते थे। घे दुर्ग पनाते थे। यज्ञशाला बनानेमें भी धास्तुविद्यासे काम लेते थे। मार्म्य धातुओंफा उपयोग भी अच्छी तरह जानते थे। यद्यपि लोग कई यूरोपीय ऐतिहासिक इस यातमें सन्देह करते हैं कि वैदिक काल के आयोको लोहेका शान था, परन्तु यह तो सब कोई मानता है कि उस कालमें तांबा, सोना और चाँदीका प्रचुर उपयोग किया जाता था । लोहे के उपयोगके प्रमाण भी पर्याप्त मौजूद हैं। आर्य लोग धनुप-चाणके अतिरिक्त भाला और सैनिक कुठारका भी उपयोग करते थे। वे घोड़ोंके रथपर चढ़कर लड़ते थे। सामाजिक जीवन वैदिक कालमें जाति-पातिका भेद ऐसा वर्ण विभाग और न था जैसा कि भव है । स्मरण रहना चाहिये जातिभेद । कि जैसा कि पहले कह आये हैं आर्यों के पदले 4