पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१०८

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वैदिक कालकी सभ्यता ७६ लोगोंने भाकर इस नागरिकतामें किसी कदर परिवर्तन किया; यद्यपि उनके समयमें भी चिरफालतफ पेतीकी भूमियों और रहने के मकानों में स्वामित्वके कोई अधिकार स्वीकार नहीं किये गये। भूमियां समय समयपर पतीके लिये गांचके अधिवासियों में बांट दी जाती थी और किसी मनुष्यको अपनी कृषिकी भूमिको येचने या रेहन करनेका अधिकार न था। गांवके इर्द- गिर्द कुछ भूमि पशुओंके चरनेके लिये जङ्गलके रूपमे शामिलात छोड़ी जाती थी । गांवके जोहड़ और फुएं सब शामलात थे। हां, यह सम्भव है कि ढोर डंगर प्रत्येकाके अपने अलग हो और उपज भी स्वकीय सम्पत्ति समझी जाती हो। कृषिके अतिरिक्त लोग अन्य नाना प्रकारके व्यवसाय भी करते थे। प्रत्येक गांव अपनी भावश्यकताओंको पूरा कर लेता था। सम्भव है व्यव- सायी लोगोंको उनकी सेवायोंका पुरस्कार प्रेतीको भूमियोंकी उपजके भागके रूपमें दिया जाता हो जैसा कि अंगरेजी राज्यके थारम्भतक होता रहा है और कई स्थानोंमें अब भी है। वैदिक आर्य गद्य और पद्यकी कलासे विद्यायें परिचित थे। कई घेद-संहिताये पद्यमे है परन्तु ब्राहाण-ग्रन्ध गधमें हैं इसके अतिरिक्त जैसा कि पहले कह आये हैं, इन लोगोंने संक्षित वर्णनकी एक ऐसी घिधि निकाली थी जो संसारमें अनुपम है । इसे संस्कृत भाषामें "सून" कहा गया है। हिन्दुओंने अपनी सारी विद्याओंको सूत्रोंके रूपमें वर्णन किया है। एक ओर व्याकरणके सूत्र हैं तो दूसरी ओर धर्म सूत्र और श्रौत सूत्र |ौत सूत्रोंमें यश करनेको भिन्न भिन्न रीतियों और अनुष्ठानोंका वर्णन है। धर्म-सूत्रोंमे कानून और शिक्षा- पद्धति आदि हैं। परन्तु आर्यो के यदुतसे दूसरे शास्त्र भी