सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारतवर्षका इतिहास कठिन है। परन्तु यह स्पष्ट है कि पुरुषों और स्त्रियों में शिक्षाका खूब प्रचार था और आश्रमोंको प्रथा सम्भवतः जारी हो चुकी थी। द्विजोंमें प्रत्येक पालकको ब्रह्मचर्य-पूर्वक गुरु-गृहमें रह- कर विद्योपार्जन करना पड़ता था। इसके अतिरिक्त वनों और भिन्न भिन्न रमणीक स्थानों में इस प्रकारके आधमधे जहां विद्वान लोग विद्या-दान देते थे। ये माधम और परिपद उस समयके कालेज और यूनिवर्सिटियां थीं। यहां लड़के और लड़कियों को डिगरियां दी जाती थी, वहांसे प्रमाण-पत्र पाकर वे संसार- सद्धि और यश प्राप्त करते थे। संस्कृत साहित्यमें ऐसे अनेक आश्रमोंका उल्लेख मिलता है जिनमें व्याकरणसे लेकर धनुर्वेदतक सब प्रकारकी विद्यायें सिखलाई जाती थीं। धर्म- शास्त्रका जानना सम्भवतः सपके लिये आवश्यक था, क्योंकि उसको जाने बिना कोई भी मनुष्य अपने कर्तव्यों और स्वत्वोंको पूरी तरह न जान सकता था। आजकल भी यूरोप और अम रीकाके विश्वविद्यालयोंमें स्यत्वों और कर्तव्योंकी शिक्षा आर- भिक पाठशालाओंसे शुरू की जाती है और भारतवर्षके सदृश लड़कोंको प्रचलित कानूनों और नागरिकताके अधिकारोंसे अनभिश नहीं रक्खा जात