पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१६८

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भारतवर्षका इतिहास. ":" प्रविष्ट होनेका वचन दिया और फिर इन्कार कर दिया। इस प्रतिज्ञा और इन्कारकी गवाही यूनानी इतिहासकार भारियनने दी है। परन्तु इस यातको सब कोई मानते हैं कि सिकन्दरने उनको दुर्गमसे निकालकर एक पहाड़ीपर अपने शिविरसे नी मोलके अन्तरपर डेरा डालनेफी माशा दी, और फिर जय उन्होंने सिकन्दरके साथ मिलकर अपने देशबन्धुभोंके विरुद्ध लड़नेसे इन्कार किया तो सिफन्दरने ऐसे समयमें जय कि घे अपने मापको सुरक्षित समझकर सो रहे थे सहसा धावा कर दिया। जय उनको होश आया तो उन्होंने एक चक्र पनाया और उस चकमें अपने यच्चों और स्त्रियोंको रखकर अतीव चीर- तासे सामना किया। इस युद्ध में स्त्रियोंने भी योग दिया। ये सात हजारके सात हज़ार उसो स्थानपर प्रेत रहे । फेवल उनकी स्त्रियाँ और शस्त्रहीन मनुष्य ही यचे । यहुतसे प्राचीन और आधुनिक इतिहास-लेखक सिकन्दरके इस विश्वासघातकी घोर निन्दा करते हैं। परन्तु एङ्गालो-इण्डियन इतिहास लेखक इस विश्वास-घात और कपटको नीतिसंगत ठहराते हैं। इससे पहले भी एक अवसरपर जब सिकन्दर एफ पहाड़ीमें लड़ रहा था तो उसके कंधेपर एक तीर लग जाने के कारण यूनानियोंने सब कैदियोंका पध फर डाला और नगरका नगर भूतलके साथ मिला दिया। याजकल भी सीमा प्रदेशकी लड़ाई में अनेक पार ऐसा हुआ है कि यूरोपियन लोगोंने देहातके देहात जला दिये हैं। जनवरी सन् ३२६ ईसापूर्वमें सिकन्दर अपनी, सेना सहित अटकसे सोलह मील ऊरर रोहना नामक स्थानपर पहुंच गया। वहां उसने नावोंका पुल घनाया। यही उसे तक्षशिला-नरेशके पुत्रके दूत मिले। यह राजा पहले ही गतवर्ष में सिकन्दरकी अधीनता स्वीकार कर चुका था। इस दूतसमूहने सिकन्दरको 1