पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१६९

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मगध राज्य, बड़े सिकन्दरका आक्रमण १३६ सात सौ सवार, तीन सहस्त्र घोड़े, आठ सहन पल, दस सहन भेड़ और एक चांदी की यहुत बड़ी राशि भेंट की। तक्षशिलाके राजाका उस समय पहाडी राजा.अभिसार और जेहलम (मेलम) प्रान्तके राजा पोरस दोनों के साथ मनोमालिन्य था। फरवरी सन् ३२६ ईसापूर्वमें सिकन्दरने तक्षशिला नरेशको सहायतासे अटक नदीको पार करके भारतको पवित्र भूमिगर पैर रखना। तक्षशिला-नरेशका उदाहरण देखकर राजा अमिसार भी अधीन हो गया । परन्तु महाराजा पोरसने अधीनतासे इन्कार कर दिया और सिकन्दरको सूचित कर दिया कि मैं 'जेहलमके तटपर तुम्हारा सामना करुगा। सिकन्दर मई सन् ३२६ ईसापूर्व में जेहलमके किनारे पहुँचा। पोरसने तुमुल युद्ध किया और यड़ी घोरतासे लड़ता रहा । परन्तु सिकन्दरके भाग्य के सामने उसको पेश न चली । ऐतिहासिक लोग इस युद्धकी आलोचना करते हुए कहते हैं कि भारतीयों के हारनेका कारण यह था कि उनकी सेना अतीव भारी शस्त्रोंसे सजित थी, जिससे वह सुगम- तासे इधर उधर न जा सकती थी। भारतीयोंका अधिकतर भरोसा हाथियोंपर था जिन्होंने सदा धोखा दिया। पोरस बड़ा घलिए और लम्बे डीलका मनुष्य था। यह नी घाव पाकर पकड़ा गया। जय वह अचेत पड़ा था तो उसे पूछा गया कि उसके साथ कैसा पर्ताव किया जाय । उसने उत्तर दिया “जैसा • राजा लोग राजाओंके साथ करते हैं।" यह उत्तर प्राचीन हिन्दू भाय्यॉकी सभ्यता और रोति अनुशल था। हिन्दु मार्य किसी पराजित राजाका पध न करते धेचरन उसको जीतकर उसका प्रदेश उसे लौटा देते थे जुलाई सन् ३२६ ई० पू०में सिकन्दरने बनायको पार किया मोर उसके थोड़ी ही देर याद रावीके पार पहुंच गया। इस