पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१७०

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१४० भारतवर्षका इतिहास प्रदेशमें इस समय कतिपय प्रवल जातियां बसती थीं। उन्होंने, सिकन्दरकी सेनाके दांत खट्टे किये । उनसे तमाफर उसकी सेनाने आगे जानेसे इन्कार कर दिया। व्यासके किनारेतक पहुंचते पहुंचते उसकी सेनामें विद्रोहका भाव यात यढ़ गया। सिकन्दरने एक प्रवल भाषणद्वारा अपने सिपाहियोंको आगे बढ़नेकी प्रेरणा की । इसका उत्तर एक रिसालदारने यदे साहस- के साथ देते हुए भागे पढ़नेसे इन्कार कर दिया। अन्तको यहांसे सिकन्दरको वापस जाना पड़ा। राधी और चनायको दुबारा पार फरके सिफन्दर जेहलमके किनारेपर आकर ठहरा। और अफ़ोघर सन् ३२६ ईसापूर्वमें अपने समस्त आयोजनोंको पूर्ण और राजा पोरस तथा तक्षशिला-नरेशको अपना प्रतिनिधि नियत करके वह जेहलम नदीके मार्गसे वापस हुआ। मार्ग भनेक स्थानोंपर उसे स्थानीय जातियोंसे लड़ना पड़ा । एक स्थानपर यह घोर रूपसे आहत हो गया। अोवर सन् ३२५ ईसापूर्वमें दस मासकी यात्राके याद, सिकन्दर फारसकी खाडीके किनारेपर पहुँचा। उसने अपनी सेनाका एक दल न्यारफसके अधीन अलग भेजा था। यह उसे इस स्थानके निकट आ मिला। सिकन्दर थमी किरमानिया में ही था कि उसे पायवालोंके , विद्रोह कर देनेफा फुसमाचार प्राप्त हुआ। परन्तु उस समय वह और उसकी सेना ऐसी हैरान हो चुकी थी कि उसके लिये वापस जाना कठिन था। जून सन् ३२३ ई० पू० में बेबीलोनमें सिकन्दरका देहान्त हो गया और उसके साथ ही भारतपर उसके प्रभुत्यकी भी समाप्ति हो गई। सन् ३२१ ईसापूर्व में जब यूनानी राज्यकी दुवारा घांट हुई; तय मकदूनियाके सर्वोच्च अधिकारी एण्टी. पेटरने भारतीय प्रान्तोंकी स्वाधीनताको स्वीकार कर लिया। सिकन्दरका भार .