उस नाईने मारतवर्षका इतिहास किया। "चरित्रकी दृष्टिसे चन्द्रगुप्त राजा अशोकको नहीं पहुं। चता । परन्तु योग्यता, व्यवस्था, चीरता और सैन्य-संचालनमें चन्द्रगुप्त न केवल अपने समयमें अद्वितीय था, वरन संसारके इतिहासमें बहुत थोड़े ऐसे शासक हुए हैं जिनको उसके बराबर कहा जा सकता है। पिताकी ओरसे चन्द्रगुप्त नन्द बंशका राजकुमार था परन्तु उसको माता एकनीच वर्णको स्त्री थी। हेवल लिखता है कि उसकी मा राजाके मोरोंके रखवालेकी बेटी थी। इसीलिये वंशका नाम मौर्य हुआ। विसेण्ट स्मिथ लिखता है कि उसकी माता, या दादी, यो नानीका नाम मुरा था, इसीसे नंशका नाम मौर्य हुआ। नन्द वंश भी क्षत्रिय वंश न था। अन्तिम गन्द राजा, दूसरी पीढ़ीमें, एक नाईकी सन्तान बताया जाता है। तत्कालीन रानीसे अनुचित सम्बन्ध उत्पन्न करके राज सिंहासन पर अधिकार कर लिया था। अस्तु, यह कथा धास्तयमें चाहे कुछ ही हो, पर यह प्रकट है कि तत्कालीन भारतले शासनमें केवल क्षत्रियों और ब्राह्मणोंकी हो विशेषता न थी। कहते है अन्तिम नंदने चन्द्रगुप्तके वधकी भाशा दी थी और चन्द्रगुप्नने भागकर तक्षशिला राज्यमें शरण ली थी। जब सिकन्दर तक्ष. शिला पहुंचा तब चन्द्रगुप्त वहां था। कहा जाता है कि उसने सिकन्दरफो मगध राज्यको विजय करने में सहायता देनेका वचन दिया था । परन्तु यह कथन स्पष्टतया असत्य है, क्योंकि वक्षशिलांसे चलकर व्यासतक पहुँचनेके इतिहासमें चन्द्रगुप्तका नाम कहीं नहीं भाता। सिकन्दर जैसे बुद्धिमान, निपुण और विश्व-विजयी व्यक्तिके लिये चन्द्रगुप्तकी सहायता गनीमत थी, और यदि चन्द्रगुप्त, वास्तवमें, सहायता देनेपर उद्यत होता तो सिकंदर उसको अपने साथ लेता। 1
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