पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१८२

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1 भारतवर्यका इतिहास १५२ विंसेंट स्मिथ लिखता है कि भूमिकी उपजका .२५ भाग राजाको दिया जाता था। परन्तु उसका यह कथन सत्य नहीं है। कि हिन्दू-कालमें भूमिका स्वामी सदा राजाको समझा जाता था। वास्तव में यांत यह है कि प्राचीनकालमें भारतमें भूमिका स्वामित्व न राजाका था न किसी एक कृपिकारका, परन् भूमि गांवकी शामलात होती थी। उपजका अश.१ से लेकर.१६ तक लिखा है, राजाका स्वत्व समझा जाता था। सिंचाई विभाग। चन्द्रगुप्तके समयमें जलप्रदानका एक नियमयद्ध विभाग था। नहरें बनी हुई थीं और प्रत्येक व्यक्तिको बारी बारीसे जल मिलता था। खेतीकी भूमिका पूरा और ठीक ठीक माप रखा जाता था। उस समयका शासन जलप्रदानके लिये नहरोंके अतिरिक्त यड़े बड़े तालाव भी बनवाया करता था। देखिये चन्द्रगुप्त एक अधीनस्य कर्मचारी पुष्पगुप्तने (जिसको वैश्य जातिसे लिखा है) एक छोटी नदीपर बांध लगाकर जलप्रदानके लिये गिरिनारके समीप पानीका एक जलाशय तैयार कराया और उसका नाम सुदर्शन सरोवर रक्खा था। इस सरोवरके एक ओर दुर्ग था और दूसरी ओर शिला-लेखके लिये एक बड़ी चट्टान । परन्तु नालियां पूर्ण न होने पाई थीं कि पुष्पगुप्तका देहान्त हो गया। फिर उस अपूर्ण सरोवरको सम्राट अशोकके समयमें राजा तुशासयने पूरा किया । यह घांध चार सौ वर्पतक यना रहा और सन् १५० ई० में एक भारी तूफानमें टूट गया। फिर इस बांधको शक जातिके शासक रुद्रदमनने बनवाया। सन् ४५१ ई० में उसकी मरम्मत हुई, परन्तु उसके बाद वह कर टूट गया इसका पता नहीं। चन्द्रगप्तके समयमें सड़कोंका प्रवन्ध भी बहुत उत्तम था