पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१८४

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1 तीसरा परिच्छेद . कौटिल्यका अर्थशास्त्र । सम्राट चन्द्रगुप्तके राजत्वकालकी बड़ी बड़ी घटनाओंका उल्लेख हमने पिछले परिच्छेदमें कर दिया है। ये घटनायें इतिहास-लेखकोंने अधिकतर मगस्थनीज़के अन्वेषणोंसे ली हैं। परन्तु यह स्मरण रखना चाहिये कि मगस्थनीज़फी मूल पुस्तक नष्ट हो चुकी है। उसके कुछ भाग दूसरे यूनानी और रोमन लेपकोंके लेखोंमें उद्धत किये हुए विद्यमान है। उन्हींका संग्रह फरके वे वृत्तान्त स्थिर किये गये हैं जो चन्द्रगुप्तके विषयमें इस समय क्षात हैं। परन्तु चन्द्रगुप्तके समयका एक और प्रबल लेख विद्यमान है। इतिहासवेत्ताओं और विद्वानोंको इसका पता पिछले कुछ वर्षों में लगा है। इसका नाम कौटिल्यका अर्थशास्त्र है। कौटिल्य भी चाणक्यका ही नाम है। उसे विष्णुगुप्त भी कहते हैं । इस पुस्तकमें वर्णित विषयोंसे तत्का• लीन अवस्थाका ऐसा चित्र मिलता है कि उसने विद्याप्रेमी मनुष्योंके विचारों में प्राचीन आर्य लोगोंकी राजनीतिक व्यव. स्थाके विषय में एक भारी क्रान्ति उत्पन्न कर दी है। साधारणतया इतिहास-लेखक ईसाके जन्मके पहले सात शताब्दियोंको बौद्धकाल समझते हैं। पर अव कुछ अंगरेज ऐति. हासिफ, जिनमेंसे एक विसेंट स्मिथ भी है,.स्पष्टरूपसे स्वीकार करते हैं कि वास्तव में भारत के इतिहासमें कोई ऐसा काल नहीं हुना जिसको चौद्धकाल कहा जा सके। बौद्ध विचारोंका प्रचार और उनका प्रभाव भारतको सामाजिक और धार्मिक .