- १६४ भारतघर्षका इतिहास पर, कवचपर, सोने-चांदीपर, गाड़ियोपर, अन्नपर, रतोपर, इनके अतिरिक्त उन पदार्थों पर भी कोई टेक्सन था जो धार्मिक प्रयोजनोंके लिये, विधाहके लिये, राजाकी अटके लिये, अथवा प्रसव के समय माताके उपयोगके लिये लाये जायं । जो व्यापारी अभयपत्र (पास) के विना प्रवेश कर आता था उसको दुर्गना कर देना पड़ता था। महसूल उस समय लिया जाता था जय वस्तुतः क्रय और विक्रय होता था। मय और विक्रय केवल मण्डियों में होता था। ये मण्डियां नगरके बाहर थीं। विंसेण्ट स्मिथने विदेशसे भाई हुई वस्तुओंपरके सब करोंको इकट्ठा कर के बीस प्रति शतकी औसत निकाली है और शेष वस्तुओं के करोंकी दर भिन्न भिन्न यताई गई है। विदेशसे आई हुई मदिरापर विशेष प्रकारका कर था। जिन दुकानोंपर मदिरा विकती थी उनके सम्बन्धमें वर्तमान यूरोपीय देशोंके सदृश, विशेष नियम और व्यवस्था थी और उन में लोगोंके सुभीतेके लिये भिन्न भिन्न प्रकारकी सुप:सामग्री उपस्थित करनेकी आशा थी। ग्रामोंमें मदिरा बेचनेकी दूकाने नहीं थीं और नगरोंमें उन दुकानोंपर विशेष कर्मचारियोंका । पहरा रहता था। वे पीनेवालोंके मालकी रक्षा करते थे क्योंकि चोरीकी अवस्थामें दूकानदारको नुकसान पूरा करना पड़ता था। इस प्रकार यू तशालाओंका प्रबन्ध था। ऐसा जान पड़ता है कि . प्राचीन मारतवर्ष में जुआ खेलनेका रोग बहुत था। चन्द्रगुप्त की राज्यसंस्थाने द्यूतकर्म सर्वथा बन्दकर दिया और नगरोंमें उसके लिये लायसेंस नियत कर दिये थे। जल-सिंचाई। • जैसा कि मगस्थनीज़ने लिखा है, चंद्रगुप्त- की. राज्यसंस्था जलको सिंचाई के साधन अपनी प्रजाके लिये उपस्थित करती थी। . .
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१९४
दिखावट