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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१९६

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भारतवर्षका इतिहास फला-कौशलके प्रयोजनोंके रिये यमाई जाती थीं। व्यवसायियों और औद्योगिक लोगोंफी समायें अलग हों। नागरिक प्रबंध नगरके प्रबन्धक विषयमें भी इस अर्थ: शास्त्रमें बहुत् विस्तारके साथ मादेश लिखे । नगरके मध्य में राजभवन होता था। इस प्रासादफे उत्तरमें राज परिवारका देवालय, उत्तरमागमें ब्राह्मण,और उघ कक्षा- के शिल्पी, जैसे कि शस्त्र पनानेवाले लोहार और बहुमूल्य पत्थरोंके कारीगर रहते थे। उत्तर-पश्चिम भागमें याजार और अस्पताल थे। अस्पतालोंमें औषधियां सरकारी भाएडारोंसे दी जाती थीं। नगरका पूर्वी भाग क्षत्रियों, वैश्यों और अन्य कारी: गरोंके लिये विशेषरूपसे नियत था। पश्चिमी भाग शूद्रोंके लिये होता था। इस भागमें कई और कनफे कासनेवाले चटाई बनाने. वाले और चमड़ेके कारीगर ही रहते थे। नगरके भिन्न भिन्न कोने में व्यवसायी समाओं और सहकारी समाजोंके प्रधान कार्यालय थे। नगरोफे नियममें स्वच्छतापर, जल पहुंचानेपर, फल और फलोंफे उद्यानापर, और सरकारी भवनोंकी रक्षा- पर विशेष ध्यान दिया जाता था। जो लोग जलाशपको या सार्वजनिक मागों को मैला करते थे, अथवा मृत जन्तुओं या 'मानुपी शवोंको पड़ा रहने देते थे उनको इण्ड दिया जाता था। करें और श्मशान भूमियां भी सरकारी थीं। पाटीलपुत्रमें प्रत्येक दस घरके लिये एक मुर्गा था। नगरमें छप्पर बनानेकी आशा न थी। बड़ी घड़ी सड़कोंफे रास्तोंपर और साधारण चौकोंपर और राजभवनोंके सामने बड़े बड़े वर्तन पानीके भरे हुए रक्खे रहते थे। और प्रत्येक गृहस्थका कर्तव्य था कि यह अपने घरमें आग बुझानेके लिये सीढ़ियां, कुल्हाड़ियाँ, कुण्डे, रस्सियाँ, टोकरियां, और चमके टोले रक्खे, और आग लग जानेकी घर में पड़ोसियोंको पूरी सहायता दे।