पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१९७

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कौटिल्यका अर्थशास्त्र १६७ - पशुओंकी रक्षा। गौयोंके दोहने और दृध-मक्खन आदिकी फौटिल्यके अर्धा-शास्त्रमें पशुओंके भोजन, स्वच्छताके सम्बन्धमें नियम दिये गये हैं। उसमें यह भी लिखा हुआ है कि सांडों और हाथियों को किस प्रकार पाला जाय, और चरवाहोंको वेतनपर नियुक्त किया जाय या आयमें भाग देकर । इसी प्रकार राजकीय अभ्यशालाका प्रबन्ध भी नियम पूर्वक था। पशुओंको निर्दयता और चोदो चचानेके नियम सविस्तर दिये गये हैं। गांवों में न्याय (अदालत) का कारवार न्याय-प्रवन्ध। गांवके नम्बरदार और स्थानीय पञ्चायते फरती थीं। ये छोटे छोटे अभियोगोंका निर्णय करती थीं। इनके अतिरिक्त न्यायालय दो प्रकारके होते थे-ऊँचे और नीचे । प्रत्येक न्यायालय में छ: जज होते थे-तीन ऐसे जो धर्म-शास्त्र और नीति-शास्त्रका पूरा पूरा ज्ञान रखते हों। और तीन ऐसे जो थानीय प्रधानों और क्रियात्मक व्यवहारों में निपुण हों। इन अचे और नीचे न्यायालयों के अभियोगोंकी सूचियां लिखी हुई हैं। इन सब न्यायालयोंकी अन्तिम अपील राजाको भित्री कौंसिलमें होती थी। यही उय न्यायालय दुर्भिक्षका प्रबन्ध करते दुर्भिक्षमें सहायता । थे। जो अन्न सरकारी भाण्डारोंमें आता था उसका आधा भाग दुर्भिक्षके दिनोंके लिये सुरक्षित रक्ता जाताथा और अकाल पड़नेपर इस भाएडारमेंसेवन यांटा जाता था। अगली फसल के चीजके लिये भी यहींसे दिया जाता था। लोगोंको आजीविकाफे साधन उपस्थित फरनेके लिये बड़ी बड़ी इमारतें बनाना भारम्भ कर दिया जाता था ! धना- ढयोंसे सदा चन्दा लेकर निर्धनोंकी सहायता की जाती थी, और