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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/१९९

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1 . महाराजा बिन्दुसार और महाराजा अशोकका राजत्वकाल १६६ बिन्दुसारने दक्खिनको स्वयं जीता तो यह बात बहुत शतक उसके गौरवको बढ़ानेवाली है, क्योंकि उस समयतक दक्षिन पूर्णरूपसे आर्य राजाओंके अधिकारमें नहीं आया था। यह यात मानी हुई है कि, पश्चिममें दक्खिन मैसूरकी सीमातक महाराज अशोकके राज्यमें मिला हुआ.था। और यह बात भी मानी हुई है कि अशोकने अपने राजत्वकालमें केवल कलिङ्गको ही विजय किया। कलिङ्ग पूर्वमें बङ्गाल की खाड़ीके तटपर एक प्रान्तका नाम था। यह नर्मदा और महानदीके चीच स्थित था। अतपय यह स्पष्ट है कि दक्खिनका अवशिष्ट भाग या तो चन्द्र- गुप्तने जीतकर अपने राज्यमें मिलाया या बिन्दुसारने । पश्चिमी राजाओंके विन्दुसारके समयमें पाश्चात्य राजाओंके दूत। अनेक दूत उसके दयारमें आये। मगस्थनीजके चले जाने याद सिल्यूकसके पुत्र ऐण्टिओकसने नया दूत समूह 'मेजा। फिर मिस्र-नरेश टोल्मी फो डोलफसने भी देओनी सेऊसकी अध्यक्षतामें एक दूत-समूह भेजा। इससे विदित होता है कि उस समय पाश्चात्य जगत्के साथ भारतके सम्बन्ध बहुत विस्तृत थे । व्यापारके भनेक मार्ग खुले थे और भापसमें दूतोंका अदल बदल होता था। बिन्दुसारके शासनकालकी एक कथा प्रसिद्ध है कि उसने यूनान नरेश ऐण्टिओकससे एक उच्च कोटि- का दार्शनिक मांगा और उसके बदले में अतीव मूल्यवान वस्तुयें भेंट देनेका वचन दिया। परन्तु ऐण्टिओकसने हंसीमें यह उत्तर देकर टाल दिया कि मेरी जातिके तत्त्वज्ञानी यिकते नहीं। इससे यह प्रकट होता है कि यद्यपि पूर्व और पश्चिमके बीच माना जाना जारी था, व्यापारिक सम्बन्ध भी थे, और राजाओं के दून मी माते जाते थे, परन्तु प्रथम श्रेणीफे विद्वान न भारतसे यूनान नाते थे यौर न यूनानसे भारत आते थे। 1