पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२००

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मारतयका इतिहास अशोकका बिन्दुसारने पचीस घर्पतफ राज्य पिया और राजतिलक। यह सन् २७३ ईसा-पूर्व में मर गया। परन्तु महाराजा अशोफफा तिलकोत्सव सन् २६९ ई० पू० तक नहीं हुमा । इन धीचके चार वर्षों के विषयमें ऐति- हासिकोंके भनुमान भिन्न भिन्न है। हेवल टिपता है कि यहुत सम्भव है कि उसका यह समय परीक्षा में पीता हो, पोंकि प्राचीन भार्यो का तिलकोत्सव उस समयतक नहीं होता था जवतक कि प्रजा अपने नये राजाके गद्दीपर बैठनेको प्रसन्नतासे स्वीकार नहीं कर लेती थी। परन्तु यह भी सम्भव है कि यह समय टाशोफको अपने बड़े भाईके साथ निपटारा करने में लगा हो। अशोकका काम, तक्षशिला। अशोक अपने वापका ज्येष्ठ पुत्र न था, परन्तु युवराजके रूपमें बिन्दुसारने उसको सबसे योग्य समझकर युवराज बना दिया था। बिन्दुसारके जीवन.. फालमें ही मशोकके सुप्रबन्ध और योग्यताका सिका जम चुका था। अशोक अपने पिताके समयमें पहले तस. शिलाका राजप्रतिनिधि रही। तक्षशिलाके राज्यमें उस समय फाश्मीर प्रान्त, नेपाल, हिन्दूकुश पर्वततक सारा अफगानिस्तान, वलोचिस्तान और पाव मिले हुए थे। तक्षशिलाका विश्वधि- द्यालय थायुर्वेदकी शिक्षाके लिये विशेष रूपसे जगत्प्रसिद्ध था। उसकी प्रसिद्धि में अशोकके समयमें भी किसी प्रकारफी कमी नहीं हुई थी। भारतके धनी मानी लोगोंके लड़के और विद्याप्रेमी लोग विद्याकी प्राप्तिके लिये तक्षशिला जाते थे। भारतमें विद्या और कलाओंका दूसरा केन्द्र (इसका यह अर्थ नहीं कि और केन्द्र नहीं थे) उज्जैन नगर था। यह पश्चिमी भारतका द्वार और यड़ा उजन ।