महाराजा बिन्दुसार और महाराजा अशोकका राजत्वकाल १८३ द्वीपमें फैला दिया। कुछ समयके पश्चात् महेन्द्रकी यहिन गयासे पड़के वृक्षकी, एक शाखा ले गई और उसको वहां स्थापित किया गया। यह वृक्ष अबतक पड़ा है। सिंहल उस समयसे अयतक युद्ध-धर्मका अनुयायी है। अशोकके समयमें दक्खिनमें चार राज्य दक्खिनके राज्य। -अर्थात् चोल, पाण्डय, केरलपुत्र, और सतियपुत्र । चोल राज्यकी राजधानी उरईयूर या पुरानी तृच. नापली थी। पाण्डय राज्यकी कुरुकाई थी जो अब टिना- वलीके जिलेके अन्तर्गत है। केरलपुत्रके राज्यमें मालाबारका वह प्रान्त मिला हुआ था जो तुलुप देशके दक्षिणमें है। इसके अतिरिक चेरा राज्य भी इसी में था। सतियपुत्र राज्यका यह प्रदेश था जिसका मध्यवर्ती स्थान मङ्गलोर नगर है। इन सब राज्योंके साथ अशोककी मित्रता थी और इन मवमें,उसने भित्र भिन्न बिहार भीर मन्दिर बनाये थे। ऊपर लिखा जा चुका है कि उसने अपने भाई महेन्द्रको लङ्का भेजा जिसने अपना शेष जीवन उस द्वीपमें धर्म प्रचारमें व्यतीत किया। वहां अबतक उसकी पूजा होती है । महेन्द्र की राखपर लड्डा द्वीपमें एक बड़ा अद्भुत स्तूप बना हुआ है। वह उन स्मारकोंमें से एक है जो लड्डाकी शोभा समझे जाते हैं। महावंशमें लिखा है कि महाराज अशोकने अपने प्रवारक पाको भी भेजे जिसका नाम उस समय स्वर्ण-भूमि था। उसने यूनानी देशोंमें बौद्ध धर्मका प्रचार किया। इसमें कुछ सन्देह । महाका दवा हुमा मगर अनुराधापुर ससारमें बुद्ध धर्मका एक इन्चन स्मारक है। इसके मामने एक अगर न निखको गन्दों में रोम और य नाम पालतु देख पहने हैं । अव भमिक्षी खोदकर इस नगरके विशाल भवनों पाटिको प्रकामम माया जा रहा है । मेमे इन सम्झहरोंको मय टेखाई।
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२१३
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