भारतवर्षका इतिहास नहीं कि बौद्ध धर्म और बौद्ध रीति-नीतिका गहरा असर यूनानी तत्वज्ञानपर और ईसाई-धर्मकी शिक्षा और रीति-नीतिपर पड़ा। सभी इतिहास-लेखक इस बातपर एकमत हैं कि अशोक बड़ा धर्मात्मा और विद्वान् था और उसके वचन और कर्म में एकता थी। उसके नामसे जो लेख प्रसिद्ध है वे सब उसकी लेखनीसे हैं, और वे उसके धर्म तथा पवित्रताके भावसे मुँहामुह भरे पड़े हैं। इससे यह प्रकट होता है कि अशोक कितना परिश्रमी और उद्योगी था और किस प्रकार उसने अपना सिका जनताके हृदयपर बैठाया था। कहते हैं कि अशोककी अनेक स्त्रियां थीं; परन्तु केवल दोको राजरानीका पद प्राप्त था । इनमेंसे एक चारुवाकी बड़ी धर्मात्मा थी और अशोककी आज्ञाओंमें उसकी उदारता तथा दान-पुण्य- का वर्णन है। बुढ़ापेकी अवस्था में उसकी प्रिय रानी असंघिमित्राका देहांत हो गया। इसके पश्चात् उसने एक मानिनी युवतीसे विवाह किया। उसने राजाको धमके कार्यों से हटानेका बहुत व्यर्थ यत्न किया और जादू-टोने भी कराये । इस स्त्रीके विषयमें कहा जाता है कि वह अपनी सौतके पुत्र कुनालपर आसक हो गई। जब उस धर्मात्मा राजकुमारने उसकी बात माननेसे इन्कार कर दिया तब रानीने षड्यन्त्र रचकर तक्षशिलामें फुनालकी आंखें निकलवा दी। जव अशोकको यह वृत्तान्त ज्ञात हुआ तब उसने न केवल भाकी वरन् रानीको जीतेजी आगमें जलवा दिया और मूल अपराधियोंको घोर दण्ड दिया । विंसेंट स्मिथ इन दोनों ऐतियोंको ऐतिहासिक घटानाओंके सदश विश्वसनीय नहीं समझता। परन्तु अशोकके उज्ज्वल नामपर एक बड़ा धव्या है और वह यह कि उसका फौजदारी
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