पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२१९

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. भारतवर्यका इतिहास १६० था। उस घोडेके साथ कुछ और घोड़े छोड़े जाते थे और कुछ सेना भी साथ रहती थी। जिस प्रदेशमें वह घोड़ा चला जाता था यहांके राजाको या तो लड़ना पड़ता था या अधीनता स्वी- कार करनी पड़ती थी। दोनों अवस्याओंमें राजा घोडेके पीछे पीछे हो लेता था। इस प्रकार जय घोड़ा और घोडेके साथ. सेना उन प्रदेशों से लांधकर आ जाती यो जिनको अधीन करना अभीष्ट होता था। तय घोड़ा छोड़नेवाले राजाको यह मधिकार हो जाता कि वह अश्वमेध या करे। जितने कालतक घोड़ा फिरता रहता था ब्राह्मण लोग राजधानी में भिन्न २ अनु. ष्ठान करते रहते थे। पुष्पमित्रने इसी मर्यादाके अनुसार या किया था। M पुष्पमित्रका धर्म। अश्वमेध या ब्राह्मणोंका चलाया हुवा अनुष्ठान है। इस कारण तथा और भी अनेक प्रमाणोंके आधारपर इतिहास-लेखकोंका यह विचार है कि पुष्पमित्रके समयमें बुद्ध धर्म के साथ बहुत कुछ कठोरता हुई। कहा जाता है कि पुप्पमित्रने बहुतसे बौद्ध-विहार और मन्दिर जला दिये परन्तु हेवल और हाइस डेविड्ज़ दोनों इस कहानीको विश्वास्य नहीं समझते ४ भारतका प्रसिद्ध भाप्यकार पतञ्जलि जो पतञ्जलिका योग-सूत्रोंका प्रणेतामाना जाता है उसी समः ।काल । यमें हुआ है। यह वंश ११२ वर्षतक मगधर्मे शासन करता रहा। इसका अन्तिम राजा देवभूति जो बड़ा विलासी और दुराचारी था, दुराचारके एक षड्यन्त्रमें, मारा गया।

  • -झाइस विश इस बात से इन्कार करता है कि भारतमें कमी मोगा .

विकासक्रम अत्याचार किये गये । परन्तु विमेंट सिथ मानता है कि घोड़ा गया पन्यापार काय आ, यद्यपि भारतमे वोह धर्मके उस जानेका यह कारब न था।