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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२२०

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. शुद्ध, काण्व और मान्ध्रवंश शुङ्गवंशके पश्चात् सन् ०३० पू० में काएर यश । वसुदेव काण्वने एक नये वंशकी नींव डाली। इस वंशने केवल ४५ वर्ष राज्य किया। इसके चार राजा हुए परन्तु उनके समयमें कोई विशेष उल्लेखनीय घटना नहीं हुई। ऐसा जान पड़ता है कि आन्ध्र राज्य आन्ध्रवंश। यद्यपि अशोकके समयमें उसके अधीन था परन्तु उसके मरते ही वह स्वाधीन हो गया। इस राज्यका आरम्भ ईसाके ३०० वर्ष पहलेसे भी कुछ पीछे हुमा । चन्द्रगुप्तके समयमें तीस पडे यड़े प्राचीरवाले नगर इसके अन्तर्गत थे। (इनके अतिरिक्त असंख्य गांव थे।) आन्ध्रोंकी सेनामें एक लाप प्यादे दो हजार सवार और एक हजार हाथी थे । अशोक- के मरते ही इन लोगोंने अपने अधिकृत देशोंको यदाना आरम्भ कर दिया और सन् २४० या २३० ई० पू०के लगभग पश्चिमी घाटपर गोदावरीके उद्भवके समीप नासिक नगर जो हिन्दुओं- का एक पड़ा तीर्थ गिना जाता है, उनके राज्यमे मिला हुआ इस वंशका हाल नामक एक राजा कवि राजा हाल। हो गया है। इस वंशका दूसरा नाम शातवाहन पाशालिवाहन भी था यह वंश प्राकृत भाषाका वहा आश्रय. हाता था। आन्द्रवंशका साय राजत्यकाल ४५६ या ४६० वर्ष घतलाया जाता है। इतने कालमे उनके तीस राजे हुए। उनका शासन सन् २२५ ई० में समाप्त हुआ। यह काल इस वंशकी नीवके आरम्भसे-जिसकासमय लगभग ३०० वर्ष ई० पू० गिना जाता है। शुरू होता हैं। इस बंशक राजत्वकालके आरम्भके ठीक

  • मान पानदेग में प्राकृत नही बोलो नाती वाद वाको भाषा तेलग।