गुप्तवंशका राज्य विस्तार २०९- फरद राज्य था। पश्चिमी हिमालयमें फर्तुपुर ( कमाऊँ, अल., मोडा, गढवाल और कांगडेका प्रान्त), पक्षाव, पूर्वी राज.. पूताना और मालवा सम्भवतः स्वतन्त्र राज्य थे, जैसी कि सिक- न्दरके आक्रमणके समय दशा थी। इस आक्रमणके समय मेलोई थोर कोई जातियोंका पञ्जाबमें प्रजासत्तात्मक राज्य था। इसी प्रकार पश्चिमको ओर गोयालम्प केन्द्रिक साम्राज्यको सीमा थी। पूर्वी राजपूताना और मालवामें अर्जुनाइन, मालधी, और भाभीर स्वतन्य जातिया थीं।' इस थोर चंबल नदी केन्द्रिक, राज्यकी सीमा थी। नर्मदातकका प्रदेश दक्षिणी सीमा थी। अर्थात् चौथी शतान्दीफे मध्यमें कैन्द्रिक साम्राज्यमें जो सीधे तौरपर, चन्द्रगुप्तके अधीन था, उत्तरी भारतका सारा वसा हुआ और उपजाऊ प्रदेश मिला हुआ था। यह पूर्वमें हुगली नदीसे भारम्भ होकर पश्चिममें यमुना और चंचलतक फैला हुआ था। यह उत्तरमें हिमालयके भञ्चलसे लेकर दक्षिणमें नर्मदातक पहुंचता था । परन्तु वास्तनिक साम्राज्य आसामसे लेकर पजाव- फी पश्चिमी सीमातक और नेपालसे लेकर कुमारी अन्तरीपसे कुछ ऊपरतक जाता था। इन प्रदेशों में जो राजा राज्य करते थे अथवा जो स्वतन्त्र जातियाँ प्रजातन्त्र प्रबन्ध अधीन थीं वे समुद्रगुप्तकी अधीनता स्वीकार करती थीं और उनमेंसे यदुतसी कर देती थीं। भारतकी सीमाके यादर विदेशी राज्यों के साथ सम्बन्ध । समुद्रगुप्तके सम्बन्ध पश्चिममें गान्धार, फाबुल, तातार और तुर्किस्तानके राजाओं के साथ और दक्षिणमें लेका तथा अन्य द्वीपोंके साथ थे। सन् ३६० ई० के लगभग चौद्ध राजा श्री. सकासे राजदूत । मेघवर्णने समुद्रगुप्त के दरवारमें एक दूतसमूह १४
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