२१०. .;भारतवर्ष का इतिहास भेजा 1 : उसका उद्देश्य यह था कि लङ्काके यौद्ध-यात्रियोंके सुभीते तथा विश्रामके लिये बुद्ध-गयाके समीप उनको एक मठ बनानेकी आज्ञा दी जाय। इस आशाके मिलनेपर लंका-नरेशने एक बहुन विशाल भवन तैयार कराया। यह ऊंचाईमें तीन मसिला था। इसमें छः बड़े बड़े कमरे थे, और तीन बुर्ज थे। इसके आंगनकी दीवार तीस या चालीस फुट ऊँची थी। इस भवनकी सजावटमें यहुत परिश्रम और प्रचुर धन व्यय कियो गया और बड़ा शिल्प-कौशल दिखलाया गया था। बुद्धको मूर्ति सोने और चांदीमें ढालकर उसमें हीरे और जवाहरात जड़े गये। उसके समीप जो स्तूप बनाये गये उनमें महात्मा बुद्ध पवित्र स्मृतिचिह्न दवाये गये थे। वे भी बहुत शानदार थे। सातवर्षी शताव्दीमें जब चीनी पर्यटक धनसांग भारत आया तव इस विशाल भवनमें एक सहस्र भिक्षु रहते थे। समुद्रगुप्तने अपनी महत्तायुक्त विजयोंकी , स्मृतिमें अश्वमेध यज्ञ किया और एक नया लिका चलाया। समुद्रगुप्तकी व्यक्तिगत बड़ा भारी सेनानी और सेना- नायक था वरन् वह साहित्य और कलामें भी असाधारण योग्यता रखता था। उसका नाम 'भारतके कृतविद्य कवियों में गिना जाता है। इसके अतिरिक्त उसे संगीतविद्यापर-बड़ा प्रेम :था और यह वीणा यजाने में विशेष रूपसे निपुण था । समुद्रगुप्त अकारके सदश बड़ा विद्याव्यसनी था। यद्यपि यह भाप पछा हिन्दू था परन्तु अन्य धामों के नेताओं के साथ बड़ी उदारता और विशालहृदयताका वर्ताय करता था। प्रसिद्ध अश्वमेध यज्ञ ! समुद्रगुप्त न केवल एक योग्यतायें।
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