गुप्त राजाओंके कालमें हिन्दू-साहित्य और कलाको उन्नति २२३ अगणित हुई परन्तु सबका सिद्धान्त एक है। उपनिपद् इक्यावन हुए परन्तु सबकी शिक्षा एक है । दर्शन छः हुए परन्तु सयका तच्यशान एक ही अद्वतका प्रतिपादन करता है। इस एकताको महाभारतमें साधारणतया और गीतामें विशेषतया अतीव मनो- हर रूप दिया गया है। यहांतक कि बौद्ध धर्मको भी हिन्दू- धर्ममें अङ्गभूत कर लिया गया। इसका यह तात्पर्य नहीं कि भारतकी शिक्षामें कोई मतभेद नहीं अथवा कहाँ सिद्धान्तोंकी भिन्नता नहीं। वरन् इसका यह अर्थ है कि भारतीय अपनी सूक्ष्मदर्शिता और तर्कसे अपने सर्व मत-भेदोंको एक ही संयो- जनापर लाकर इकट्ठा कर देते थे। हिन्दू-सभ्यताकी यह एक विशेषता है जिसकी उपमा संसारमें दूसरी नहीं पाई जाती। यही हिन्दू धर्मकी निर्यलता और यही इसकी शक्ति है । अपने सर्व मत-भेदों और कहानियों के होते हुए भी महाभारत स्वयं इस मिश्रित हिन्दू-धर्माका एक सर्वोत्तम चित्र है। इसमें सब ही हिन्दूवाद और सब ही हिन्दूसिद्धान्त हैं और श्रीमती निवे. दिताके कथनानुसार, वे सब यह शिक्षा देते हैं कि भारत एक मनु-स्मृति। इस समयकी दूसरी पुस्तक मनुसंहिता है। मनुका मूल कानून बहुत प्राचीन है। मानव धर्म. 'सून बहुत पुराने सूनोंमेंसे हैं। परन्तु वर्तमान मनुस्मृति ऐसी पुरानी नहीं है, और अनुमान किया जाता है कि यह ईसवी शताब्दीके आरम्भिक संवत्का संग्रह है। इस धर्म-शास्त्रका भीतरी साक्ष्य भी इसो पातका समर्थन करता है। वैदिककाल- से लेकर पौराणिक कालव जितने परिवर्तन हिन्दू धर्मा, हिन्दू रीति-नीति और हिन्दू राजनीतिक पद्धतिमें हुए उन सबको इस "निवेदिसा रचित फुट फाल्न भाव पियन हिरो, पृ.१०८
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