पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२५६

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1 ठहराया गया चाणक्य नीतिमें यह माज्ञा है कि चतगृहोंके २२४ भारतवर्पका इतिहास. पुस्तकमें इकट्ठा करनेका यन किया गया है। यही कारण है कि इसके कुछ भागोंका परस्पर विरोध और भेद देख पड़ता है। उदाहरणार्थ यदि त्रिीयोंकी स्थिति या ब्राह्मणों के अधिकारों अथवा जिम्मेदारियों के विषयमें मनु-स्मृतिकी सब आज्ञाओं को इकट्ठा किया जाय तो उनसे विदित हो जाता है कि ये माज्ञायें न तो एक समयके क्रियात्मक जीवनको प्रकट करती हैं और न एक कालके विचारोंका परिणाम हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जब यह संग्रह अन्तिम बार सम्पादित हुया तय हिन्दुओंकी जाति- पांति थाहत अंशमें अपने वर्तमान रूपमें पूर्ण हो गई थी और हिन्दुओंमें भिन्न भिन्न जातियोंके विवाह और व्यवसायोंकी दृष्टिसे असंख्य जातियां अस्तित्वमें आ चुकी थीं। तीन उच्च . वर्णीको निचले वर्णकी त्रियों के साथ विवाह करनेकी आशा. थी, परन्तु अपनेसे ऊपरके वर्णके साथ विवाह करनेकी आशा न थी। निचले वर्णके पुरुपको किसी अवस्था में भी उच्च वर्णकी खोके साथ विवाह करनेफी आशा ग थी। ब्राह्मणोंको विशेष रूपसे सतर्क किया गया था कि वे अपने वर्णसे याहर विवाह न करें। और यही चेतावनी तीनों ऊचे वर्णो को शूदः स्त्रियों के साथ विवाह परनेके सम्बन्धमें थी। इसी प्रकार पान-पान सम्बन्धी मनुको गाशाओंमें भी किसी अंशमें परस्पर विरोध देख पड़ता है। साधारणतया मांस पाने- का निषेध है परन्तु यक्षमें मारे हुए पशुका मांस खानेकी आता है। मदिरापानका सर्वया निषेध है और मदिरापानका दण्ड मृत्यु नियत किया गया है। राजाओंके लिये जुआ पेलना और शिकार करना निषिद्ध . . लिपे लायसेंस नियत किये जायें। मनुस्मृतिमें आशा है कि