पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कन्नौज, पंजाय, अजमेर, दिल्ली, ग्वालियरकी राजधानियां २६५ उसका बदला लिया। राजपूतानेके इतिहासमें भी कई ऐसी घटनायें हैं जिनमें राजपूतोंने कावूमें पाये दुप शत्रुको छोड़ दिया इसलिये हिन्दुकहानी लेसकोंका यह कथन कोई असम्भाव्य नहीं हो सकता कि पृथ्वीराजने शहाबुद्दीनको छोड़ दिया हो। जो भी हो शहाबुद्दीन थोड़े ही कालके पश्चात् एक नई सेना लेकर .पृथ्वीराजके मुकाविलेमें आ डटा। पृथ्वीराजको सहायताके लिये जयचन्दके सिवा उत्तर भारतके सभी राजा भाये थे, पर पानीपतके स्थलपर उसकी हार हुई। विंसेंट स्मिथकी सम्मति में इस ऐतिहमें पृथ्वीराजकी मृत्यु । कुछ भी सत्यांश नहीं है कि पृथ्वीराज पकड़ा जाकर गजनी पहुंचाया गया, वहां उसने सुल्तानपर वार किया और फिर उसके टुकड़े कर दिये गये। स्मिथकी सम्मतिमें पृथ्वीराज पानीपतके क्षेत्रमें मारा गया। एक हिन्दू ऐतिह्य भी यह कहता है कि कन्नौज-नरेश जयचन्दकी पुत्री संयोगिता जो पृथ्वीराजकी प्रिय पत्नी थी, अपने पतिका सिर लेकर सती हुई। स्मिथ गजनीवाली कहानीको इसलिये निर्मूल ठहराता है कि सुलतान शहाबुद्दीन गजनी पहुचनेसे पहले ही मार्गमें मारा गया था। इसलिये यह सत्य नहीं हो सकता कि पृथ्वी- राजने गजनी पहुंचकर सुलतानपर आक्रमण किया हो। परन्तु यह हो सकता है कि सुलातानसे अभिप्राय मुहम्मद गोरीके अतिरिक्त किसी और व्यक्तिसे हो। परन्तु जो भी हो यह बात मानी हुई है कि पृथ्वीराज अपने देशकी रक्षा करता हुभा शहा- बुद्दीन गोरीके हाथसे मारा गया। स्मिथ लिखता है कि पहले पृथ्वीराजयो फेद व्यर लिया गया और फिर निर्दयतापूर्वक मार डाला गया। पृथ्वीराजको हारके पश्चात् मुसलमानोंने चार पांच वर्षके समयके अन्दर अन्दर दिल्ली, कन्नौज,, अज-