२७२ भारतवर्षका इतिहास मिला हुआ था जो पूर्व और पश्चिमकी ओर बंगालकी खाड़ीसे लेकर जालंधरतक फैला हुआ है। दक्षिणमें उसका राज्य विन्ध्याचलतक था। यह बात मानी हुई है कि सन् ८१० ई० के लगभग इस राजाने कन्नौजके राजाको पराजित किया। उम समय उसके साथ उत्तर भारतके नौ राजा' सहायक थे। धर्म- पाल बौद्धधर्मका अनुयायी था। उसने विक्रमसीलका प्रसिद्ध मठ और महाविद्यालय स्थापित किया। यह भागलपुरके जिलेमें पत्थरघाटके स्थलपर था। उस मठमें कहा जाता है कि १०७ मन्दिर और ६ कालेज थे। इस वंशका तीसरा राजा देवपाल था। यह देवपाल । पाल वंशक सय राजाओंमेंसे अधिक शक्तिशादी गिना गया है। इसके सेनापति लाउसेनने आसाम और कलिङ्गको विजय किया। इस राजाने ४८ वर्षतक राज्य किया । दसवीं शताब्दीमें काम्बोज नामको एक पहाड़ी जातिनें अपने एक सरदारको राजा बनाकर इस घंशके राज्यमें हस्तक्षेप 'किया। परन्तु इस वंशके नवें राजा महीपाल प्रथमने सन् १७८ ई० या सन् १८० ई० में उनको निकालकर फिर अपने सिंहासन- पर अधिकार कर लिया। इस राजाका गजत्यकाल ५२ वर्षतक रहा और उसकी महत्ता में बहुतसे बङ्गाली गीत वंगालके भिन्न भिन्न मांगोंमें पाये जाते हैं। कहा जाता है कि इस राजाने चौद्ध- धर्मके फैलानेमें यहुत यत्न किया। उसने और उसके पुत्र पाय. पालने तिब्दतमें धौद्ध-धर्म की नीवोंको दृढ़ किया ।न्यायपालके पुत्र विग्रहपाल तृतीयने चेदिके राजा कर्णको हार दी। जब सन् १०८० ई० में उसकी मृत्यु हुई तो उसके तीन पुत्र महीपाल, शूरपाल और रामपाल थे। जय महीपाल सिंहासनपर बैठा तो उसने अपने भाइयोंको फैद किया। इसके कारण राज्यमें बहुन +
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