हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना सी लड़ाइयां लड़ी, प्रत्यक्षरूपले किस्ता-कहानीसे अधिक महत्व नहीं रखती। इन पृष्ठोंमें मुसलमानोंफे पहलेके शासन- कालके भारत-इतिहासका संक्षिप्तसा दिग्दर्शन कराया गया है। परन्तु प्रत उद्देश्य यह रहा है कि भारतीय नवयुवकोंको भार- तीय सम्यता, भारतीय विचार और भारतीय साहित्यकी कथा संक्षिप्तरूपसे सुना दी जावे। अच्छा तो यह होता कि यह कथा केवल वर्णनतक ही परिमित रहती परन्तु कुछ कारणोंसे यह भावश्यकता जान पड़ती है फि हिन्द-सभ्यताफी तुलना घर्तमान कालकी यूरोपीय सभ्यतासे की जाय, जिससे इस पुस्तकके पढ़नेवालोंको दोनों सभ्यताओंके विषयमें सम्मति स्थिर करने में सुविधा हो। इस तुल नाकी आवश्यकता है कि 'क्षित रीतिसे यह भी यह भी भावश्यक प्रतीत यता दिया जाय कि इस तुलनाके फरनेकी पपों आवश्यकता है, और तुलना करनेका यह काम पाठकोंपर क्यों नहीं छोड़ा जा सकता' घात यह है कि भारतके इतिहासमें भारतीयोंने पहली यार किसी दूसरी जातिसे बौद्धिक और आध्यात्मिक पराजय पाई है। माशा की जाती है कि यह पराजय स्थायी नहीं है। इसके पहले याहरफे आक्रमणकारी आते रहे और राजनीतिक परि- घर्तन करते रहे, परन्तु सयने हमारीसभ्यता, हमारे रहन सहनके मोर हमारे सामाजिक जीवनके सामने सिर झुकाया। प्रत्येक आक्रमणकारी जातिने इसी में अपना कल्याण, अपना प्राण और अपना गौरव समझा कि यह हमाग धर्म प्रहण करफे और हमारे समाजमें प्रविष्ट होकर अपने आपको भारतीय जातिका अङ्ग बनाये। प्राचीन आर्यों फेभारतमें मानेके पश्चात् गौर मुसलमानोंक भाकमणफे पहले बहुत सी जातियां और
पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३४१
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