३०२ भारतवर्षका इतिहास पढ़ानेकी रीतियां सब बदलती जा रही हैं और सबसे पढ़कर दुःखकी बात यह है कि हम जीपनके सय नियमों में पश्चिमसे प्रकाश पानेकी चेष्टा करते है। भारतको आदालतोंमें जब कोई ' ऐसा सूक्ष्म कानूनी विषय उपस्थित होता है जिसपर भारतीय गवर्नमेण्टका कोई स्पष्ट नियम लागू न होता हो तो हमारे वकील इस विषयको हल करनेके लिये अमरीकन, जर्मन और फ्रांसीसी कानूनदानोंकी सम्मतियां पेश करते हैं। भारतीय वझीलोंने कानूनपर जितनी बड़ी बड़ी पुस्तकें लिखो है उनमें उन्होंने अपनी विद्वत्ता और महत्चाका प्रमाण इस प्रकार दिया है कि यूरोपके भिन्न भिन्न कानूनदानोंके विचारोंसे अपना परिचय सिद्ध करें और उनके प्रमाण दें। कभी यह नहीं देखा गया कि ये लोग भारतके प्राचीन बड़े पढ़े कानूनदानों (धर्मशास्त्रों) के प्रमाणोंसे किसी नवीन विषयपर प्रकाश डालनेका यत करें। कोई जाति कानूनफे यिना नहीं रह सकती और यदि कानूनी वातोंमें किसी जातिका मस्तिष्क बाहरसे पथदर्शन ढूंढ़ता है तो निश्चय ही यह जाति अपनी कानूनी योग्यताके दीवालेका प्रमाण देती है। परन्तु हमारी प्रकृतियोंका वर्तमान झुकाव केवल यहीतक पर्याप्त नहीं है। हम जीवनके सभी अङ्गोंमें उदाहरणार्थ शिक्षा, संस्कार, चिकित्सा और प्रवन्ध मादिमें भी अपना पराजय स्वीकार करके सदा थाहरसे प्रकाश दूंढ़नेका यत्न करते. हैं। मैं इस बातका माननेवाला नहीं किं यदि हमें फिसी यातका ज्ञान नहीं तो वह हमें बाहरसे नहीं सीखनी चाहिये । परन्तु में इस यातका माननेवाला मी नहीं कि हम अपने समग्र अतीत इतिहासपर पानी फेरकर एक ऐसा
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