पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३१८ 7 भारतवर्षका इतिहास. का सबसे बुरा रूप है, विशेषतः जब कि उनकी गियुक्ति और उनको अलग कर देना, प्रजाके हाथमें न हो। यूरोप और अमरीकामें अब यह सामान्य शिकायत है कि जिन प्रजातंत्र नियमोपर आजकल संसारमें राज्य किया जाता है वे सच्चे प्रजातंत्रके नियम नहीं। वह केवल नामका प्रजातंत्र है । सारो शक्ति धनाढ्यों और पूजीवालोंके हाथोंमें है और ये .. धनाढ्य और पूँजीवाले लोग शासनकी समस्त शकि और राज्यके समस्त उपायोंको अपने लाभके लिये काममें लाते हैं। सर्वसाधारणको और कङ्गालोंको यद्यपि मत (वोट) का अधि. कार है परन्तु वास्तव में राज्यके प्रबंधमें उनका कुछ भी हाथ नहीं । इन प्रजातंत्र देशोंमें राजकर्मचारी पहले दर्जेके येईमान और घूस खानेवाले हैं। और वृत्तिधारियों (पेंशनरों ) को धना. दयों भोर पूंजीवालोंके हाथोंकी ओर देखना पड़ता है। पश्चिमके वर्तमान प्रजातंत्र राज्योंमें जितने दोप और कुप्रबंध है ये हमको उन प्रजातंत्र नियमोंका प्रशंसक नहीं बनाते। वास्तविक प्रजा तंत्र-शासन उस समय स्थापित होगा जव धनादयों और निर्धनों- के योच जो दीवार खड़ी है वह गिर जायगी और साधारण

प्रजाकी दीनता और दरिद्रता दूर हो जायगी। इसके अतिरिक्त

प्रजातंत्र शासनके यह अर्थ नहीं कि शासन नियमहीन, दुरा. चारी, कपटी, स्वार्थी, लोभी और दुर्वृत्त मनुष्योंके हाथमें चला जाय । आधुनिक प्रजातंत्र शासन केवल धन और बौद्धिक योग्यता- को राजसिंहासनपर बैठाता है। भारत ऐसे प्रजातंत्रका मानने- वाला या जिसकी नींव धर्म, सदाचार, स्वार्थहीनता, त्याग, नम्रता और लोकहितेच्छापर थी। यूरोपके प्रजातंत्र राज्योंके कर्मचारी प्रचुर संख्यामें दुराचारी, लालची, नियमहीन और 0